Tuesday 30 October 2018

वाह ताज !! आगरा की यात्रा, भाग 1...

वाह ताज !! आगरा की यात्रा, भाग 1...
वाह ताज !! आगरा की यात्रा, भाग 2...


"पापा, आज मेरा GK का verbal एग्जाम था।"
"अच्छा, कैसा रहा एग्जाम ? क्या क्या पूछा आपकी टीचर ने ?"
"पूछा कि चारमीनार, गोल्डन टेम्पल और ताजमहल कौन कौन से शहर में हैं। मैंने बता दिया कि चारमीनार हैदराबाद में है, गोल्डन टेम्पल अमृतसर में और ताजमहल आगरा में है।"
"शाबास ! आपने सही बताया।"
"पापा, हम ताजमहल देखने कब चलेंगे ?"

ये वार्तालाप मेरे और मेरे बेटे के बीच हो रहा था। इनकी ताजमहल देखने की फरमाइश को मैं काफी दिनों से टाल रहा था। लेकिन अब अपनी स्कूल बुक में पढ़ने के बाद, इनकी यह फरमाइश काफी जोर पकड़ चुकी थी।

आखिर एक वीकेंड को आगरा ट्रिप का प्रोग्राम बन गया। आमतौर पर शनिवार और रविवार को आगरा में पर्यटकों की काफी भीड़ होती है इसलिए हम ऐसे समय वहां नहीं जाना चाहते थे। निर्णय हुआ कि दिल्ली से शुक्रवार को आगरा जायेंगे, रात को वहीँ रुकेंगे और अगले दिन सुबह सुबह ताज महल देख कर वापस दिल्ली आ जायेंगे। 

यमुना एक्सप्रेसवे बन जाने के बाद रोड ट्रिप में भी कोई समस्या नहीं रही है। इसलिए गाड़ी से जाने का ही फाइनल हुआ। 

शुक्रवार सुबह हम चारों (हम दो और हमारे दो) सुबह 7 बजे घर से निकल पड़े। गाड़ी में पेट्रोल वगैरह एक दिन पहले ही फुल करवा लिया था। रास्ते के लिए चिप्स, जूस और पानी वगैरह भी रख लिया था। आगरा में होटल भी बुक हो गया था। सुबह सुबह ट्रैफिक बिलकुल कम था इसलिए फटाफट अक्षरधाम और फिर नॉएडा महामाया फ्लाईओवर तक पहुँच गए। इसके आगे ग्रेटर नॉएडा वाली रोड शुरू हुई जहाँ गाड़ी की स्पीड लिमिट 100 kmph थी। फिर भी हम 80 - 85 की स्पीड से ही चल रहे थे। 15 मिनट बाद हम यमुना एक्सप्रेसवे के स्टार्ट पॉइंट तक पहुँच गए। 

सड़क से बाएं लूप बना कर फ्लाईओवर पर चढ़ दायीं तरफ मुड़ गए। यहाँ से सीमेंट की रोड स्टार्ट हुई और गाड़ी की आवाज ही बदल गयी। सड़क पर ट्रैफिक बिल्कुल कम था। शायद सुबह की वजह से ऐसा था या फिर शुक्रवार की वजह से आगरा जाने वाले पर्यटक नहीं थे। दरअसल शुक्रवार को ताजमहल पर्यटकों के लिए बंद रहता है। चलिए हमें तो फायदा रहा कि बिलकुल खाली सड़क मिली। 

8 लेन की यह सड़क शानदार बनी है। सड़क का ज्यादातर हिस्सा सीमेंट से और पुल वगैरह के ऊपर की सड़क तारकोल की है। गाडी की अधिकतम स्पीड 100 kmph है और सड़क पर जगह जगह कैमरे लगे हैं, जो आपकी स्पीड को मॉनिटर करते रहते हैं। स्पीड लिमिट के बावजूद बहुत से लोग गाडी तेज चलाते हैं और टायर फटने की घटनाएं होती रहती हैं। इसलिए जगह जगह स्पीड लिमिट के बारे में जागरूक करने के लिए बोर्ड लगे थे। 

इस शानदार सड़क पर न तो गियर बदलने का झंझट था और न ही ओवरटेक की चिंता। सिर्फ स्पीड पेडल पर पैर रखो और चलते चलो। पीछे की सीट पर बाकि तीनों सो चुके थे। ऐसे में आलस आना लाजिमी है। मैं पहले स्टॉप, जो कि जेवर टोल से थोड़ा पहले है, का इंतजार करने लगा। 

एक्सप्रेसवे के स्टार्ट पॉइंट से यह स्टॉप लगभग 40 किलोमीटर है और इस दूरी के लिए हमें आधा घंटा लगा। यहाँ पूरा काम्प्लेक्स ही बना है जिसमें पेट्रोल पंप, शौचालय, ढाबा और बहुत से रेस्टोरेंट्स हैं। यहीं रुक नाश्ता किया और चाय पी। 30 मिनट का ब्रेक और इसके बाद आगे की यात्रा शुरू हुई। 

थोड़ा आगे ही जेवर टोल है। टोल पर रुके तो मैंने अपना क्रेडिट कार्ड आगे बढ़ा दिया। और यह स्वीकार भी कर लिया गया। हालाँकि अब कुछ साल से क्रेडिट कार्ड या बाकी डिजिटल तरीकों से टोल पेमेंट में मुश्किल आती है। टोल स्टाफ सिर्फ कैश पेमेंट पर ही जोर देते हैं। 

हमने एक ही बार में आगरा तक का टोल दे दिया था। अब बाकी दोनों टोल बूथ पर सिर्फ यहाँ की पर्ची स्कैन करानी थी। 

टोल पार किया तो बाएं हाथ पर एक और ढाबा काम्प्लेक्स था। पहले सिर्फ यही एक रेस्टोरेंट था लेकिन अब टोल के पास ही दो ऑप्शन हैं। वैसे भी आगे वाले ढाबे पर ट्रक ही ज्यादा खड़े थे। 

अब हम नॉनस्टॉप चलते रहे। बातों बातों में मथुरा टोल भी आ गया। यहाँ अपनी पर्ची स्कैन कराई और आगे बढे। 

सड़क के दोनों तरफ कांटेदार बाड़ है। लेकिन कुछ जगह यह बाड़ तोड़ दी गयी है और आसपास के लोग यहीं से ऊपर एक्सप्रेसवे पर आ कर बस आदि का इंतजार कर रहे थे। एक्सप्रेसवे कंपनी वालों की गाड़ियां पूरे रास्ते पर पेट्रोलिंग करती रहती हैं। दोनों तरफ की सड़कों के बीच पेड़ लगाने का काम भी चल रहा था। बल्कि अब तो वहां घनी हरियाली हो गयी है। यह हरियाली वातावरण के लिए तो अच्छी है ही साथ ही रात को सामने से आने वाली गाड़ियों की हेडलाइट की रौशनी को भी रोकती है। हर टोल बूथ के पास ब्रेक लेने के लिए सभी सुविधाएँ भी हैं। कुल मिला कर इंतजाम अच्छा है। 

तभी तीसरा टोल भी आ गया। तीनों ही टोल लगभग 45 - 50 किलोमीटर के गैप पर स्थित हैं। पूरा टोल रोड पार करने में हमें 2 घंटे से जरा ज्यादा समय लगा। इसमें ब्रेक का टाइम अलग है। 

तीसरा टोल पार कर सड़क सीधा आगरा इटावा रोड पर मिलती है। वहां से आगरा जाने के लिए आगे से यु टर्न ले कर वापस आना पड़ता है। दूसरा रास्ता है कि टोल पार कर थोड़ा आगे चलो तो बाएं हाथ को एक सड़क मुड़ती है जो आगरा-हाथरस-अलीगढ वाली सड़क पर मिलती है। हम इसी कट से बाएं मुड़े और यु टर्न ले वापस आगरा की तरफ चल पड़े। यह सड़क सीधा रामबाग़ होते हुए यमुना ब्रिज पर जाती है। रामबाग फ्लाईओवर के नीचे हल्का सा जाम था लेकिन जल्दी ही हम आगे चल पड़े। 

आगरा शहर में प्रवेश करते ही ट्रैफिक बढ़ गया। ढेर से विक्रम ऑटो, गाड़ियां, और ट्रकों से सड़क व्यस्त थी। गाड़ी की स्पीड मुश्किल से 20 पहुँचती थी। हम धीरे धीरे आगे बढ़ते रहे। हमारा होटल फतेहाबाद रोड पर ताज नगरी में था। यहाँ होटल लेने का कारण ताजमहल से नजदीकी और शहर के जाम से बचना था। 

हमें रामबाग से होटल पहुँचने में आधा घंटा लग गया। ऐसा ही होता है आगरा का ट्रैफिक। इस बीच हम लोग ताजमहल के बिलकुल पास से हो कर निकले। गाड़ी रोक कर बाहर आये। बेटे को गोद में उठा कर ताज दिखाया। उसे यकीन ही नहीं हुआ कि यही असली वाला ताजमहल है। खराब मौसम की वजह से ताज काफी धुंधला और पीलापन लिए दिख रहा था। जबकि बेटे ने हमेशा यही सुना था कि ताज एक दम सफ़ेद पत्थर से बना है। खैर, सच्चाई देर से ही सही लेकिन मान ली गयी। 

होटल पहुंचे तो रिसेप्शनिस्ट ने थोड़ी देर इंतजार करने के लिए कहा। दरअसल हम चेक-इन समय से पहले ही पहुँच गए थे। इस वेटिंग टाइम का उपयोग फोटो सेशन में हुआ। इस बीच मैं रिसेप्शन पर जा कर स्पेशल रिक्वेस्ट कर आया था कि क्या हमें ताज व्यू रूम मिल सकता है। होटल में ताज की तरफ बने कमरों का किराया थोड़ा ज्यादा था लेकिन रिसेप्शनिस्ट ने हमारे आग्रह को मान लिया। 

मैं अपने ऑफिसियल ट्रिप के दौरान इस होटल में पहले भी रुक चुका हूँ लेकिन तब मुझे ताज व्यू रूम नहीं मिला था। आज मिलने वाला था। 

शायद शुक्रवार की वजह से होटल में गेस्ट्स कम थे इसीलिए...... या फिर फॅमिली की वजह से.......  या शायद इसलिए कि पहले मैंने ऐसा आग्रह किया ही नहीं था........ 

चलिए हमें तो आम खाने से मतलब है न कि गुठलियों की गिनती से। 

मैं लॉबी में रखे सोफे पर आँख बंद कर बैठ गया। थोड़ी देर में रिसेप्शनिस्ट ने मेरा नाम पुकारा। जा कर रूम की चाबी ली और हम लिफ्ट की तरफ बढ़ गए। हमारा कमरा होटल की पांचवी मंजिल पर था। लिफ्ट से बाहर निकले, अपने रूम के दरवाजे पर पहुंचे, चाबी लगा दरवाजा खोल अंदर गए तो खिड़की पर पर्दा लगा था। सामान रख सबसे पहले पर्दा खोला तो मुंह से निकला, " Wow..........."

ताज बिलकुल सामने था। क्यूंकि हमारा होटल ताज के पूर्वी दरवाजे की तरफ था इसलिए हम ताज को बिलकुल सामने से देख पा रहे थे। मन ही मन होटल रिसेप्शनिस्ट को धन्यवाद दिया। 

बच्चे अपनी धमाचौकड़ी में लग गए और मैं बिस्तर पर पसर थकान उतारने लगा। आखिर सुबह जल्दी जो उठा था। खिड़की से बाहर देखा तो एक हवाई जहाज आसमान में काफी कम ऊँचाई पर चक्कर लगा रहा था। शायद आगरा के वायुसेना अड्डे से उड़ा था। 

अब भूख लगने लगी थी। साथ में लाये चिप्स ख़त्म किये और चाय बना ली। थोड़ी देर में फ्रेश हुए और आगरा घूमने निकल पड़े।   

सबसे पहले लंच करना था। गड्डी घुमा दी Dasaprakash रेस्टोरेंट की तरफ। वैसे तो हमारे सबसे नजदीक इनकी फतेहाबाद ब्रांच थी लेकिन हम सबसे पुरानी ब्रांच में ही जाना चाहते थे। यह ब्रांच मेहर सिनेमा काम्प्लेक्स में पहली मंजिल पर है। यह रेस्टोरेंट मुख्यतः अपने दक्षिण भारतीय व्यंजनों के लिए प्रसिद्द है और समय के साथ यहाँ नार्थ इंडियन और चाइनीज खाना भी मिलने लगा है। हमने मैसूर मसाला डोसा और साउथ इंडियन थाली आर्डर की। खाना फटाफट आया। खाने की क्वांटिटी और क्वालिटी दोनों ही बढ़िया थी। डोसे के साथ एक बड़ा प्याला भर सांभर भी आया, जो इतना था कि हम सब से मिल कर भी ख़त्म नहीं हुआ। चटनियों का तो कहना ही क्या। कुल मिला कर बेहतरीन खाना।

खाना खा कर सदर बाजार की तरफ घूमने निकल पड़े। यहाँ से सदर बाजार पहुंचने में 5 मिनट ही लगे। गाड़ी पार्किंग में लगा दी गयी। पार्किंग चार्ज 20 रुपये लगा लेकिन गाड़ी सुरक्षित खड़ी रही। यहाँ बहुत से गारमेंट्स ब्रांड्स के बड़े बड़े शोरूम हैं। लेकिन हमारी खरीदारी तो लोकल दुकानदारों से ही होनी थी। हमने पूरा बाजार छान दिया। शॉपिंग के नाम पर ज्यादा कुछ नहीं लिया।

अब जाना था आगरा की पहचान पेठा लेने। जहाँ गाड़ी लगायी थी वही सड़क पार पंछी पेठा वालों की दुकान थी। वैसे तो पूरे आगरा में ही बहुत से पंछी पेठा के आउटलेट्स मिलेंगे लेकिन इस दुकान पर खास तौर पर लिखा था कि इनकी सिर्फ 2 आउटलेट और हैं। पेठा टेस्ट हुआ और 4 तरह का पेठा पैक करा लिया गया। पान पेठा, नारियल पेठा, अंगूरी केसर पेठा - तीनों आधा आधा किलो और रेगुलर पेठा एक किलो। कुल बिल कुछ 250 रुपये के आसपास बना। इस से सस्ती और अच्छी मिठाई शायद और कोई नहीं है।

अँधेरा होने लगा था। अब हम वापस होटल की तरफ चल पड़े। होटल पहुँच थोड़ा रेस्ट और फिर डिनर के लिए बाहर जाना था। रूम में पहुँच डिनर के लिए ऑप्शन ढूंढने लगे। सबसे पास पिंड बलूची था। ज्यादा दूर हम जाना नहीं चाहते थे। 8 बजे पिंड बलूची के लिए पैदल ही चल पड़े। 10 मिनट में वहां पहुँच भी गए।

रेस्टोरेंट लगभग खाली था। लेकिन बाद में भीड़ होती गयी। पंजाबी रेस्टोरेंट में दाल मखनी तो खानी ही थी। फटाफट डिनर हो गया। घूमते घूमते और आइसक्रीम खाते वापस होटल आ गए। अगले दिन सुबह जल्दी ताज देखने जाना था तो 6 बजे उठने का प्रोग्राम बनाया कि 7 बजे तक ताज पहुँच जायेंगे और 9 बजे तक वापस आ कर होटल में ही नाश्ता करेंगे।

लेकिन प्लान पर कब कौन चलता है........

 अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें


ये डेस्टिनेशन के साथ मेरा ही नाम लिखा है। 

आगरा में यमुना जी 

ताज का पहला दीदार 

रास्ते से एक और व्यू। और इसे व्यू पॉइंट भी कहा जाता है। हालाँकि व्यू कुछ अच्छा नहीं है। 

वीरांगना झलकारी बाई की प्रतिमा। घोड़े की 2 टांग हवा में हैं यानि रानी की मृत्यु युद्ध के मैदान में हुई थी। 
होटल लॉबी में 
और कुछ ऐसा दिखा रूम से ताज 

यहीं बैठ ताज का दीदार करो 


बिटिया बैठना सीख रहीं थीं अभी 

ये मान्यवर आज हॉट सीट पर बैठ ही गए। 


पिंड बलूची 


 पिंड बलूची में डिनर 

बिटिया का झूला भी मिल गया 

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