Thursday 1 November 2018

वाह ताज !! आगरा की यात्रा, भाग 2...

वाह ताज !! आगरा की यात्रा, भाग 1...
वाह ताज !! आगरा की यात्रा, भाग 2...

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अगले दिन हमारा सुबह जल्दी उठ 7 बजे तक ताजमहल पहुंचना निश्चित हुआ। पर बच्चे तो बच्चे हैं। आराम से ही उठे।

तैयार होते होते 8 बज गए। अब इतना समय हो ही गया था तो नाश्ता भी कर लिया। होटल से निकलते निकलते 9 बज गए।

होटल के गेट पर सिक्योरिटी गॉर्ड से पूछताछ हुई।

"ताज महल जाने के लिए कहाँ से जाएँ ? कितना समय लगेगा ?"
"सिर्फ 2 किलोमीटर है। 5 मिनट में पहुँच जायेंगे। लेकिन अपनी गाड़ी से क्यों जाते हैं ?"
"क्यों ? अपनी गाड़ी में क्या दिक्कत है ?"
"पार्किंग की प्रॉब्लम ही रहती है वहां।"
"इतनी सुबह भी पार्किंग नहीं मिलेगी क्या ?"
"सुबह की बात नहीं है। ताजमहल की पार्किंग हर समय फुल ही रहती है। ऊपर से आज छुट्टी का दिन भी है तो भीड़ बहुत रहेगी।"
"तो फिर क्या करें ?"
"हमारी मानें तो गाड़ी होटल में ही छोड़ दो। ऑटो से चले जाओ। 50 रुपया पड़ेगा। लेकिन पार्किंग का पैसा भी बच जायेगा। "
"बहुत बढ़िया। ऑटो से ही जाते हैं।"

गॉर्ड जी भागे भागे बाहर गए और एक ऑटो रुकवा दिया। ऑटो वाले से पैसे पूछे तो 50 रुपये बताये। बैठे और चल दिए ताज की ओर। ताजमहल तक की दूरी हमारी उम्मीद से बहुत कम थी। ऑटो वाले को टिकट विंडो तक पहुँचने में बमुश्किल 3 मिनट लगे। एक बार तो लगा कि 50 रुपये ज्यादा ही दे दिए। 

टिकट विंडो पर पहुंचे। भारतीयों और विदेशियों के लिए टिकट का अलग अलग दाम था। बच्चे का प्रवेश मुफ्त था। विदेशियों को टिकट के साथ पानी की बोतल भी दी जा रही थी। टिकट लेकर बाहर आये। बहुत से बैटरी वाहन पर्यटकों को टिकट ऑफिस से ताज के मुख्य द्वार तक ले जाने के लिए खड़े थे। यह सुविधा ताज के टिकट में ही शामिल है। 

गाड़ी जल्दी ही भर गयी और हम चल पड़े ताजमहल की ओर। ताज के गेट पर सिक्योरिटी चेक था। जेंट्स और लेडीज की अलग लाइन होती है। सिक्योरिटी पार होने में 5 मिनट लगे। गेट से अंदर चले तो रास्ते के दोनों तरफ मुग़ल कालीन इमारतें बनी हुई थीं। थोड़ा आगे चले तो दाहिनी तरफ ताजमहल का पहला व्यू दिखा। मुख्य काम्प्लेक्स में जाने के लिए एक बड़ा दरवाजा था। इस दरवाजे को पार कर नीचे उतरना होता है। यानि दरवाजा मुख्य काम्प्लेक्स से काफी ऊंचा है। 

इसी तरह ताजमहल भी एक बड़े और ऊंचे प्लेटफार्म पर बना है। शायद इस दरवाजे की ऊँचाई और ताज के प्लेटफार्म की ऊँचाई सामानांतर है। पहली बार देखने से ऐसा लगता है जैसे ताज बिलकुल सामने ही है। जैसे जैसे हम दरवाजे की तरफ बढे, एक बार तो ऐसा illusion हुआ जैसे कि ताज हमारी तरफ बढ़ रहा हो। लेकिन ये बनाने वालों की कारीगरी का ही कमाल था कि ईमारत को इस तरह से बनाया है। 

फोटोसेशन चलता रहा। अंदर पहुंचे तो पूरा काम्प्लेक्स ही सैलानियों से भरा था। यानि लोग सुबह सुबह ही आ पहुंचे थे। दिन में तो भीड़ बढ़नी ही थी। 

ताजमहल के तक जाने के लिए एक लम्बा रास्ता है, जिसमे बीचों बीच पानी के फव्वारे लगे हैं। ज्यादातर फव्वारों के दाईं तरफ से जा रहे थे। हमने देखा कि बायीं तरफ भीड़ कम है तो हम उधर ही चल पड़े। पूरे बाग़ में बहुत से पेड़ लगे थे। जब चलते चलते ताज के पास पहुंचे तो मालूम हुआ कि इस रास्ते से ऊपर प्लेटफार्म पर नहीं जा सकते। लेकिन बहुत से लोग तो जा रहे थे। ध्यान से देखा तो पाया कि ये सभी विदेशी थे। सबको पैरों में पहनने के लिए शू कवर मिला था। भारतीयों को शू कवर की सुविधा नहीं थी। हमें अपने जूते या चप्पल उतर कर ऊपर चढ़ना था। 

और जूते चप्पल रखने की जगह दायीं तरफ थी। यानि इसीलिए सब लोग इस तरफ से जा रहे थे। चलिए हम लोग भी बीच में से दूसरी तरफ पहुंचे और जूते उतर ऊपर चल पड़े। ताज का प्लेटफार्म भी संगमरमर का ही बना था। इस पर धूप में भी नंगे पैर चलने में  कोई दिक्कत नहीं थी। 

जब ताज को बिलकुल पास से देखा तो वाह ताज कह उठे। क्या कमाल की कारीगरी है ! उस ज़माने में भी निर्माण में ऐसे सिमिट्री और ऐसा ताल मेल लाना, पता नहीं कैसे संभव हुआ होगा। वहां लगे बोर्ड पर पढ़ा कि  प्लेटफार्म पर बने होने के कारण ताजमहल की ऊँचाई क़ुतुब मीनार से भी ज्यादा है। एक बार विश्वास नहीं हुआ। गूगल निकाल चेक किया तो सही था। ताज क़ुतुब मीनार से आधा मीटर ऊंचा है। 

ताज की चारों तरफ चार ऊंची मीनारें खड़ी हैं। इन मीनारों को भी ऐसे बनाया गया है कि यदि भूकंप या किसी और कारण से ये मीनारें गिर पड़ें तो भी ये अंदर की तरफ न गिर कर बाहर की तरफ गिरें। ऐसा इसलिए कि अगर मीनार अंदर की तरफ गिरे तो ताज को नुक्सान पहुंचा सकती हैं। और बाहर की तरफ गिरी तो सिर्फ खुद ही धराशायी होगी। क्या सोच रही होगी......   

बाहर से ताज देख अंदर गए। शाहजहां और मुमताज की कब्रों की नक़ल देखी। असली कब्रें तो कहीं नीचे थीं जहाँ जन सामान्य का जाना मना है। 

बाहर आ ताज के पीछे की तरफ गए। यमुना नदी एक U बनाते हुए बह रही थी। बारिशों का सीजन अभी अभी ख़त्म हुआ था। ऐसे में दिल्ली में यमुना का रंग थोड़ा कम काला हो जाता है। लेकिन यहाँ यमुना बिलकुल ही काली थी। 

यमुना के दूसरी तरफ महताब बाग़ था। बाग़ में फूलों से भरी क्यारियों से बढ़िया डिज़ाइन बने थे। बताते हैं कि शाहजहां चाहता था कि यमुना के दूसरी तरफ एक दूसरा ताज बनवाये, वो भी काले संगमरमर से। यानि आमने सामने दो ताज वो भी अलग अलग दो रंगों के। लेकिन ये प्लान पूरा नहीं हो पाया और दूसरी तरफ महताब बाग बना दिया गया। 

इस ताज का रंग भी अब सफ़ेद नहीं रहा। प्रदूषण की मार से ताज भी पीला हो गया है। हालाँकि इस की स्थिति सुधारने के लिए बहुत से कदम उठाये जा रहे हैं।

सूरज सर पर आ गया था। और गर्मी बढ़ने लगी थी। इसलिए हमने वापस चलने का निर्णय किया। चलते चलते खास फोटो पॉइंट पर फोटो खिंचाई। यहाँ भी लाइन लगी थी। और न जाने क्यों लेकिन विदेशियों को फोटो खींचने में भी प्राथमिकता दी जा रही थी।

बाहर निकल गेट के पास आये तो बैटरी वाहन तैयार मिला। फटाफट टिकट काउंटर तक पहुंचे और ऑटो ले होटल पहुंचे। 12 बजने में आधा घंटा बाक़ी था तो रूम में जा कर थोड़ा रेस्ट किया। ठीक 12 बजे चेक आउट किया। गाड़ी ली और चल पड़े आगरा की मशहूर कचौड़ी खाने। 

 मेहर सिनेमा के पास दासप्रकाश में कल लंच किया था। यहीं से थोड़ा आगे प्रताप पुरा में देवीराम स्वीट्स है। अपनी कचौड़ी और जलेबियों के लिए मशहूर है। सीधा वहीँ पहुँच गए। आगरा की कचौड़िया बहुत ही ज्यादा मसालेदार और चटपटी होती हैं। गरम मसाले की इतना प्रयोग होता है कि एसिडिटी होने का पूरा चांस होता है। यही सोच सिर्फ एक कचौरी ली। वैसे भी खाने वाले हम दो ही थे। बेटे ने सिर्फ जलेबी टेस्ट की। कुल मिला दोनों चीजें बढ़िया थीं। पैसे दिए और वापस चल पड़े। 

गर्मी इतनी बढ़ गयी थी कि आगरा फोर्ट जाने का प्रोग्राम कैंसिल करना पड़ा। वैसे भी लाल पत्थर इतनी गर्मी में और भी तपने वाला था। 

अब क्या। चलो वापस दिल्ली ही चलते हैं। 

लेकिन खाना यहीं आगरा में ही खा लेना था। वर्ना यदि एक बार एक्सप्रेसवे पर चढ़ गए तो फिर बीच में फ़ास्ट फ़ूड ही मिलेगा। प्लांनिग करते करते यमुना नदी पर कर चुके थे और रामबाग चौराहे के पास पहुँचने वाले थे। इसलिए फाइनल हुआ कि राज रसोई पर खाना खाएंगे और वहीँ से सीधा एक्सप्रेसवे पर पहुँच जायेंगे। 

राज रसोई रेस्टोरेंट, आगरा से बाहर फ़िरोज़ाबाद रोड पर स्थित है। यह एक फ़ास्ट फ़ूड जॉइंट और रेस्टोरेंट है। मैं पहले भी कई बार यहाँ आ चुका था। खाना बढ़िया है। पार्किंग की काफी जगह है। पास ही पेट्रोल पंप भी है। और सबसे बड़ी बात कि महँगा नहीं है। 

खाना खाया। बेटे ने चाउमीन खायी और लस्सी पी । बिटिया ने भी लस्सी के चटखारे लिए। बिल दे कर बाहर आये। देखा तो गाडी में पेट्रोल सिर्फ दिल्ली पहुँचने भर का था।  पेट्रोल पंप पर जा कर 5 लीटर पेट्रोल भी डला लिया। और सीधा चले दिल्ली की तरफ। 

आगरा के आस पास का वातावरण काफी गर्म और शुष्क है। इसका पूरा प्रमाण एक्सप्रेसवे के दोनों तरफ भी दिख रहा था। हरियाली बहुत कम थी। खेत या तो खाली पड़े थे या फिर टीलों में तब्दील हो गए थे। 

जल्दी ही पहला टोल आया। फिर वही आगरा दिल्ली का पूरा टोल दिया। यानि बाकि दोनों टोल बूथ पर सिर्फ पर्ची स्कैन करनी थी। 

अब बीच में कहीं रुकना नहीं था। इसलिए फुल 100 स्पीड पर चल पड़े। 

लेकिन बीच में रुकना पड़ा। देखा तो दूर सड़क पर आगे एक कछुआ धीरे धीरे सड़क पार कर बायीं ओर आ रहा था। हमने गाडी धीमे करते हुए रोक ली। एक और गाड़ी भी रुक गयी। उन्होंने भी दूर से कछुआ देख लिया था । इस गाड़ी में भी एक फॅमिली थी और बच्चे भी थे। 

बच्चों ने पहली बार इतने पास से कछुआ देखा। उसके शेल पर बढ़िया नक्काशी थी। धीरे धीरे चलता कछुआ झाड़ियों में गम हो एक्सप्रेसवे से नीचे उतर गया। बिना टोल यात्रा पूरी कर गया। 

ठीक 2 घंटे बाद टोल रोड क्रॉस कर नॉएडा पहुंचे और अगले 1 घंटे में घर। 

आगरा से लाया गया पेठा हफ्ते भर तक खाया गया। 

लेकिन वहां की यादें अभी तक ताजा हैं। 

अब देखिये बाकी के फोटोग्राफ्स।

सुबह सुबह ताज 




टिकट घर 










 आती हुई यमुना 

जाती हुई यमुना 

ये तो सो भी गयीं 




इनका प्रोजेक्ट पूरा हुआ आज। थक गए श्रीमान 

राज रसोई 


कुल्हड़ की लस्सी 




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