Monday, 10 September 2018

मानसून में उत्तराखंड यात्रा... भाग 1....

वर्षा ऋतु आते ही प्रकृति जैसे झूम उठती है। धुले धुले वातावरण, चारों तरफ हरियाली और सुहाने मौसम के कारण वर्षा ऋतु का इंतजार सबको बेसब्री से रहता है, खासकर तब जब 3 महीने की तपती गर्मियों के बाद बारिशों का आना किसी सुकून से काम नहीं होता है। इस मौसम में पहाड़ों की सुंदरता और भी बढ़ जाती है। इन गर्मियों में हमने सपरिवार देहरादून जाने का कार्यक्रम बनाया। गर्मियों की छुट्टियों की वजह से ट्रैन में टिकट मिलना मुश्किल था तो अपनी गाड़ी से जाना ही तय रहा। हमेशा की तरह सप्ताहांत की बजाय सप्ताह के बीच के दिनों का प्रोग्राम रखा ताकि भीड़ भाड़ कुछ काम मिले। बेटे की छुट्टियां तो चल ही रहीं थी। मेरी छुट्टियां अप्रूव होने में भी कोई दिक्कत नहीं आयी। 

निश्चित दिन पर, जो कि बुधवार था, सुबह ६ बजे हम चारों (मैं, पत्नी, बेटा और बेटी) घर से निकल पड़े। गाड़ी में टैंकफुल पेट्रोल और टायरों में हवा, मैं एक दिन पहले ही डलवा चुका था। पीने का पानी, हल्का फुल्का स्नैक्स और
जूस वगैरह भी घर से ही ले कर चले थे। 15 मिनट में हम हिंडन एयर बेस के सामने थे। राज नगर एक्सटेंशन से जाने वाली नयी सड़क बन जाने के कारण अब मोहन नगर के जाम में फंसने की जरूरत नहीं होती है। अगले 15 मिनट में हम NH 58 पर थे। सड़क मेरठ बाईपास तक काफी संकरी है और ट्रैफिक भी बहुत होता है इसलिए स्पीड 50 से ज्यादा नहीं जा पायी। ये सफर पूरा करने में लगभग एक घंटा लगा फिर भी हम उम्मीद से तेज ही चल रहे थे। मेरठ बाईपास शुरू होते ही चौड़ी सड़क मिलती है और गाड़ी 80-90 के बीच चलने लगी। 

सुबह जल्दी निकलने की वजह से हम खाली पेट ही घर से चल पड़े थे। सबको भूख लगने लगी थी और बच्चे शांत बैठ गए थे। बच्चों का शांत बैठना यानि कि उनके पेट में चूहे कूदना। मेरठ बाई पास पार करते ही पल्लवपुरम पर बीकानेरवाला है और हमने वहीँ कुछ खाने का प्लान किया। वहां पहुंचे तो देखा कि रेस्टोरेंट खुल तो गया था मगर सर्विंग में समय था। हमने इतना इंतजार न करते हुए आगे चलने का सोचा। जैसे ही बाहर आये तो देखा कि बीकानेरवाला के साथ ही अन्नपूर्णा रेस्टोरेंट था। बाहर कुछ गाड़ियां खड़ीं थी। अंदर गए तो देखा कि वहां काफी लोग खानेपीने में लगे थे। वेटर को मेनू पूछा तो बोला कि अभी सिर्फ ब्रेडपकोडे, चाय और इडली सांभर मिलेंगे। हमने 3 ब्रेडपकोडे पैक करवाए और आगे की यात्रा पर निकल पड़े। गाड़ी में ही सबने पकोड़े खाये तो पेट के चूहे कुछ शांत हुए। फाइनल हुआ कि मुजफ्फरनगर से पहले मूलचंद रिसॉर्ट्स पर नाश्ते के लिए रुकेंगे। मेरठ से आगे मुजफ्फरनगर तक सड़क बढ़िया है। बीच में एक टोल बूथ भी है। गाड़ी आराम से 90 पर चलती रही और 40 मिनट में हम मूलचंद रिसॉर्ट्स पहुँच गए। रिसॉर्ट्स में काफी बड़ी पार्किंग की जगह है।  बहुत सी गाड़ियां वहां खड़ी थीं यानि रेस्टोरेंट में भीड़ मिलने वाली थी। गाड़ी पार्क कर मैं बाथरूम गया तो बच्चे पार्क में झूले झूलने लग गए। अंदर रेस्टोरेंट में पहुंचे तो सही में काफी लोग थे। हमने भी नाश्ता आर्डर किया। जल्दी ही गरम परांठे और बेड़मी पूरी आ गयीं। दोनों ही चीजे आलू टमाटर की सब्जी और रायते के साथ सर्व हुई थीं। साथ में गरम चाय भी थी। खाना बिलकुल ताजा और स्वादिष्ट था। यहाँ हमे कुल 30 मिनट का समय लगा और सबको आराम भी मिल गया था। 

यहाँ से चले तो रूड़की तक का सफर रुकते चलते पूरा हुआ। दोनों तरफ सड़क का काम चल रहा था इसलिए जगह जगह जाम मिल रहे थे। दोनों तरफ आम के बाग़ थे और पेड़ आमों से लदे हुए थे। रूड़की पहुँचने में डेढ़ घंटा लगा। देहरादून जाने के लिए रूड़की छावनी से बाएं जाना पड़ता है। दूरी है 70 किलोमीटर। रूड़की छावनी पर मन हुआ कि सीधा देहरादून जाने की बजाय हरिद्वार और ऋषिकेश हो कर देहरादून पहुंचा जाये। इस से ये दोनों जगह भी घूम सकते थे और गंगा जी में नहा भी सकते थे। फिर क्या था, बाएं मुड़ने की जगह गाड़ी सीधा रूड़की शहर की तरफ दौड़ा ली। एक बार तो लगा कि शायद गलती कर बैठे। पूरा शहर जाम था। रूड़की पार करते करते आधा घंटे से भी ज्यादा टाइम लग गया। रूड़की पार किया तो आगे और जाम मिला। एक तरफ का ट्रैफिक डाइवर्ट किया हुआ था। गर्मी बढ़ गयी थी। गाड़ी एक जगह खड़ी होती तो AC काम करना बंद कर देता, थोड़ा स्पीड पकड़ते तो ठंडक भी आने लगती। खैर इस सब में जैसे तैसे हरिद्वार पहुंचे। काफी समय नष्ट हो गया था तो सोचा कि हरिद्वार शहर में अंदर न जा कर सीधा गंगा घाट पर चलते हैं। मुख्य घाट पर न जा कर सबसे आखिरी घाट पर पहुंचे। यहाँ फायदा ये है कि घाट के बिलकुल पास कुछ गाड़ियों के पार्किंग की जगह है। एक जगह मिली तो हम भी गाड़ी पार्क कर पहुँच गए गंगा किनारे। बच्चों की मस्ती शुरू हुई और हमारा काम था उनका ध्यान रखना। 2 साल की बेटी को तो जैसे अगर न पकड़ते तो वो नदी में ही कूद पड़ती। यहाँ कुछ समय बिताया तो थकान भी कम हुई। इस घाट पर भीड़ कम रहती है। वापस चले तो मोठ वाला दिखा। 2 पत्ते मोठ बनवा कर खाये, पानी पिया और चल पड़े आगे। 

इसके बाद घना जंगल शुरू हुआ। ऋषिकेश तक सड़क बढ़िया ही रही। रास्ते में जगह जगह आम की ठेलियां मिलीं। ज्यादातर आम डाल के पके लग रहे थे। जल्दी ही हम ऋषिकेश पहुंचे। घाट पर जाना नहीं था तो शहर की तरफ नहीं गए। ऋषिकेश से बाएं मुड़े तो जॉली ग्रांट वाली सड़क पर पहुँच गए। दायीं तरफ दिख रहे थे ऊंचे पहाड़ और उन पर बसा नरेंद्र नगर। सड़क कुछ ऊंची नीची हो रही थी। सबके कानों में हवा भरने लगी पर बच्चे इस अनुभव को भी एन्जॉय कर रहे थे। दोनों तरफ घने पेड़ थे। आगे जाने पर जंगल ख़त्म हुआ और खेत शुरू हो गए। पीने का पानी ख़त्म हो चुका था, इसलिए जो पहली दुकान मिली वहीँ रुक गए। मैं पानी लेने गया तो देखा दोनों शैतान भी पीछे पीछे आ चुके थे। दुकान पर बहुत से अचार, स्क्वैश और शरबत भी थे। बुरांश का शरबत भी था। बुरांश, यानि पहाड़ों पर मिलने वाला एक फूल। हमने पहले एक बड़ा गिलास बुरांश का शरबत बनवाया। चखा तो बहुत ही बढ़िया लगा। 2 गिलास और बनवाया गया। सबने मन भर शरबत पिया। कुल खर्चा 30 रुपये। जो स्वाद और संतुष्टि इस शरबत से मिली वो किसी भी कोल्ड ड्रिंक से नहीं मिल सकती। 

आगे बढे तो जॉली ग्रांट एयर पोर्ट दाहिने तरफ था। क्यूंकि एयरपोर्ट और रनवे सड़क से थोड़ा नीचे है तो इंडिगो के प्लेन का टेकऑफ भी दिखा। आगे हिमालयन मेडिकल कॉलेज के सामने पूरी मार्किट मिली। भूख जोरों पर थी तो यहीं खाना खाने का प्लान हुआ। अगले रेस्टॉरणट पर रुक गए, नाम था ईना मीना डीका, नीचे कुछ दुकाने और ऊपर रेस्टोरेंट। रुकने के लिए कुछ रूम्स भी थे। खाना मंगवाया गया और मन मुताबिक खाना आया भी। थोड़ा महँगा था लेकिन साफ़ और ताजा था। वहां से चले और अगले 30 मिनट में देहरादून तक पहुँच गए। शाम हो चुकी थी और ट्रैफिक बढ़ने वाला था। गूगल बाबा की मदद ली और सबसे कम भीड़ वाली सड़क से पहुँच गए अपने होटल पर्ल ग्रैंड में। यह होटल दिल्ली रोड पर, सब्जी मंडी के सामने है। इसके बिलकुल बगल में वाइसराय इन् होटल है और सामने वाली सड़क बाई पास से हो कर बल्लूपुर चौक और फिर FRI होते हुए विकास नगर चली जाती है। होटल पहुंचे तो बारिश शुरू हो गयी थी, तब याद आया कि अभी तक क्या एक चीज थी जो हम मिस कर रहे थे। चेक इन किया, रूम में पहुंचे और ढेर हो गए। शाम को घूमने तो जाना था पर थकान की वजह से मन नहीं था। 

अगला भाग यहाँ पढ़े...  


मूलचंद रिसॉर्ट्स 

पेट पूजा 



काली बदलियां 



ये आजकल बहुत दिखते हैं 

होटल 

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