Saturday, 29 September 2018

Boys' Day Out : हिमाचल यात्रा....... भाग 3.......

Boys' Day Out : हिमाचल यात्रा....... भाग 1 .......
Boys' Day Out : हिमाचल यात्रा....... भाग 2 .......
Boys' Day Out : हिमाचल यात्रा....... भाग 3 .......

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अब तक आपने पढ़ा कि दिल्ली से शुरू हुई मनाली की यात्रा शिमला की तरफ मुड़ गयी। शिमला में एक रात रुकने के बाद हम सोलन जाने के लिए बस में बैठ गए। सोलन की जगह कसौली या चंडीगढ़ या सीधा दिल्ली जाने के कन्फ्यूजन में हमारी बस सोलन से भी आगे निकल गयी। अब आगे.......

सोलन से धरमपुर ज्यादा दूर नहीं है। रास्ते में स्टॉप भी ज्यादा नहीं थे। इसलिए हमें जो भी निर्णय करना था वो जल्दी ही करना था। दोनों लोग अपने मोबाइल फ़ोन में गूगल पर होटल ढूंढ रहे थे। ज्यादातर समय हमारी नजरें मोबाइल स्क्रीन पर थीं। ऐसे में पहाड़ी बलखाती सड़क पर यात्रा बहुत दिक्कत पैदा करती है। मेरा मन मितली वाला होने लगा। होटल की तलाश को ब्रेक दे पानी पिया और कुछ देर सड़क को फॉलो किया तो सब कुछ सामान्य हो गया। फिर से गूगल बाबा शुरू हो गए। आखिर कार एक होटल रिज़नेबल किराये के साथ मिला। ये होटल कसौली से 3 किलोमीटर पहले एक गाँव में था। लेकिन किराया फिर भी ठीक था। होटल को फोन कर एक डबल रूम बुक करने का बोला और अपने पहुँचने का अनुमानित समय भी बता दिया। मन को शांति मिली । फिर हम रास्ते के नज़ारे देखते रहे और धरमपुर पहुँच गए। 

 धरमपुर पहुँच बस से उतरे। सामने एक दुकान वाले को कसौली की बस का पूछा तो उसने सड़क पार जाने का कहा। सड़क पार कर रहे थे तो सामने ज्ञानी का ढाबा दिखा। इस ढाबे की बहुत प्रशंसा सुनी थी। उस समय धरमपुर में गिने चुने ढाबे ही होते थे। एक ज्ञानी का ढाबा और एक कर्नल्स कबाब। आजकल बहुत से और ऑप्शन भी हैं। खाना खाये टाइम हो गया था और टेंशन में खाना हजम भी हो गया था। सोचा कि हल्का स्नैक हो जाये। अंदर जा पहले तो तंदूरी परांठे और चाय बोल दी। साथ ही वेटर को पूछा कि तुम्हारे ढाबे में सबसे ज्यादा बढ़िया चीजों में और क्या क्या है तो पहला जवाब मिला दाल मखनी। उसके आगे उसने क्या क्या बोला वो हमने सुना ही नहीं। हालाँकि खाना खाने को न तो मन था और न ही टाइम, लेकिन दाल मखनी का क्या तोड़। एक प्लेट दाल मखनी भी लाने के लिए बोल दिया। ढाबों पर खाना आने में ज्यादा टाइम नहीं लगता। यहाँ भी नहीं लगा। खाना आया और पहला टुकड़ा खाते ही मज्जा आ गया। मज्जा यानि कि बहुत ज्यादा मजा। खाना वाकई बेहद स्वाद था। खाना खाने के बाद चाय पी तो रास्ते की सब थकान उतर गयी। बिल दे कर ढाबे से बाहर आये और कसौली की बस का इंतजार करने लगे। वैसे सुना है कि अब इस ढाबे के खाने की क़्वालिटी कुछ कम हो गयी है। आपने हाल फ़िलहाल में वहां खाना खाया है क्या? आपका क्या कहना है ?

थोड़ी देर में कसौली की बस आ गयी जो पहाड़ों में चलने वाली लोकल छोटी बस थी। सीट भी खाली थी। बैठे और टिकट ली। कंडक्टर को होटल का नाम बताया और उसको वहीँ उतारने को बोला। बस थोड़ी थोड़ी देर में रूकती, 1 - 2 सवारी उतरती और कुछ लोग चढ़ते। कुल सफर शायद 10 किलोमीटर से भी कम था लेकिन इस सब की वजह से होटल पहुँचने में लगभग आधा घंटा लग गया। हमें भी कौन सा जल्दी थी, हम भी घने जंगल की हरियाली देखते रहे। तभी कंडक्टर ने हमें आवाज दी कि हमारा स्टॉप आ गया है। हम बस का दरवाजा खोल नीचे उतर गए। देखा तो सामने सड़क पर ही हमारा होटल था। कंडक्टर को धन्यवाद किया कि होटल के बिलकुल सामने ही बस रुकवा दी। होटल बाहर से देखने में बढ़िया था। रिसेप्शन पर पहुंचे तो सब वीरान था। आवाज लगाई तो एक भाई प्रकट हुआ। अपनी बुकिंग का बताया और चेक इन किया। होटल का स्टाफ हमें रूम तक पहुंचा गया। कमरा ग्राउंड फ्लोर पर ही था, हालाँकि होटल 3 मंजिला था। मेरा मन था कि हमें ऊपर की फ्लोर पर रूम मिले लेकिन होटल फुल था। खैर यही सही। कमरे में अंदर गए तो दिल खुश हो गया। कमरा होटल बिल्डिंग में पीछे की तरफ था और कमरे की एंट्री भी होटल के पीछे की तरफ से ही थी । होटल के पीछे बड़ा मैदान था और ढेर सारे चीड़ के पेड़ थे। नीचे पहाड़ी की ढलान थी और उसके आगे पहाड़ों का नजारा था। होटल स्टाफ जाते जाते बता गया कि वो सामने दूर पहाड़ पर शिमला शहर है और रात को शिमला का व्यू बहुत अच्छा लगता है। अब तो मन में लालच और बढ़ गया कि अगर ऊपर के फ्लोर्स पर रूम मिल जाता तो शानदार व्यू देखने को मिलता। थोड़ी देर आराम कर बाहर आये। अब प्रश्न ये था कि कसौली तक कैसे जाएँ। सोचा कि कोई बस आती होगी तो उसी में बैठ कर कसौली पहुँच जायेंगे। 

सड़क पर आ कर बस का इंतजार करने लगे। पास में ही चाय की दुकान थी। वहीँ चाय पीने बैठ गए। दुकान वाले से बात हुई तो उन्होंने बताया कि होटल के बिलकुल पीछे एक रास्ता ऊपर कसौली बाजार तक जाता है। मुख्य सड़क से कसौली तक की दूरी 3 किलोमीटर है लेकिन इस रास्ते से लगभग 1 किलोमीटर है। चाय पी कर उनको पैसे व धन्यवाद दिया और पीछे वाले रास्ते से ऊपर जाने लगे। रास्ता क्या था, घने जंगलों के बीच से एक पक्की सड़क ही बनी थी। सड़क के दोनों तरफ शानदार पहाड़ी घर बने थे। हर घर के चारों तरफ बड़ा से बगीचा था। दूर दूर तक कोई शोर शराबा नहीं था। मतलब वहां रहने वाले स्वर्ग में रह रहे थे। हम लोग इस सड़क पर आगे बढ़ते जा रहे थे। आगे तो क्या ऊपर की तरफ ही बढ़ रहे थे। चढ़ाई बहुत ही खड़ी थी। एक किलोमीटर के रास्ते में हमें 2 बार रुकना पड़ा। शायद दाल मखनी की वजह से भी चाल धीमी थी। जैसे तैसे ऊपर पहुंचे। ये रास्ता हमें सीधा मुख्य कसौली बाजार तक ले आया। सड़क के बाई तरफ दुकाने थी और दाईं तरफ एक चर्च था। सोचा पहले चर्च ही देख लें। चर्च देखा। बाहर आये और बाजार में घूमने लगे। शनिवार होने की वजह से वाकई बहुत भीड़ थी। अधिकतर हिल स्टेशन्स की तरह यहाँ भी मॉल रोड था। शायद upper और lower मॉल रोड भी होगा। रास्ते में पता किया कि और कहाँ जा सकते हैं तो पता चला कसौली का सनसेट पॉइंट है। दिन छिपने में अभी कुछ समय था तो बाजार में ही घूमते रहे। जैसे जैसे शाम ढलने लगी, सब लोग सनसेट पॉइंट की तरफ जाने लगे। हमने भी उधर का ही रुख किया। रास्ते में शानदार कसौली क्लब दिखा । बाहर बहुत सी गाड़ियां खड़ीं थीं। कुछ लोग अभी अभी पहुंचे भी थे। क्या शानदार जिंदगी है !! स्वर्ग जैसी जगह में रहते हैं । प्रतिदिन के जरूरी कामों के लिए आने जाने में ही अच्छी खासी कसरत हो जाती है, आखिर पहाड़ी सड़कों पर चढ़ना उतरना भी कसरत ही है। प्रदूषण का नामो निशान नहीं है। शानदार क्लब में शाम बिताते हैं । और क्या चाहिए !!

थोड़ी देर में हम सनसेट पॉइंट पहुँच गए। यह कसौली के पश्चिमी तरफ एक पहाड़ का छोर है जहाँ से छिपते सूरज का बढ़िया नजारा दिखाई देता है। यह पहाड़ चंडीगढ़ की तरफ से पहला ऊंचा पहाड़ है इसलिए ऊपर से पूरा चंडीगढ़ शहर, सुखना झील और मोरनी हिल्स का भी बढ़िया व्यू दिख रहा था। दूर तक देखो तो छोटे छोटे और भी शहर दिख जाते हैं। वहां पर एक पत्थर पर बहुत से शहरों की दिशा और उन शहरों तक की एरियल दूरी भी दिखाई गयी थी। बहुत ही भीड़ हो गयी थी और लग रहा था जैसे बाजार में मौजूद सभी पर्यटक इधर ही आ गए थे। काफी शोर शराबा भी था। सूरज धीरे धीरे नीचे जा रहा था। इसी के साथ साथ लोगों का शोर भी कम होने लगा और पक्षिओं की चहचाहट बढ़ने लगी । ज्यादातर लोग अब सनसेट देखने का आनंद ले रहे थे और फोटो खींच रहे थे। हमने भी ढेर से फोटो खींचे, वीडियो बनाया और सूर्यदेव को कल तक के लिए अलविदा कहा। इसके बाद वापस चल पड़े। बाजार में पहुंचे तो हलकी ठण्ड हो गयी थी। एक ठीक सा रेस्टोरेंट दिखा। वहीँ रुक गरम थुप्का और वेज चाऊमीन खा ली। चलने से पहले डिस्पोजेबल कप्स में कॉफी भी ले ली ताकि चलते चलते पीते रहें। चर्च तक पहुंचे तो विचार हुआ कि रात में इस छोटे रास्ते से जाना ठीक रहेगा या नहीं। सामने एक दुकान वाले को पुछा। वो बोले कि बेधड़क जाओ और जहाँ रास्ता न सूझे तो मोबाइल की लाइट जला लेना। बस फिर क्या था। हम आगे बढ़ चले। पहाड़ पर नीचे उतरना थोड़ा आसान रहा। हम लोग बातें करते हुए और बीच बीच में मोबाइल की लाइट जलाते हुई नीचे आ गए। होटल पहुंचे तो देखा कि जो होटल दिन में वीरान पड़ा था, वहां अब पूरी चकाचौंध थी। सामने काफी गाड़ियां पार्क थीं जिनमे अधिकतर पंजाब नंबर और कुछ दिल्ली नंबर की थीं। चंडीगढ़ वाले लोग कसौली घूम कर शायद वापस चले जाते होंगे। ठीक भी है, सिर्फ एक घंटे के सफर के लिए क्यों होटल का खर्च करना। होटल की छत पर बहुत सी रंगीन लाइट जल रही थीं। रिसेप्शन पर पूछा तो पता लगा कि ऊपर रूफटॉप रेस्टोरेंट है। हम ऊपर छत पर गए तो सामने दूर शिमला की पहाड़ियों पर झिलमिलाती बत्तियां दिखाई दीं। ऐसा ही शानदार व्यू देहरादून से मसूरी शहर का भी दिखता है। हम लोग काफी देर तक छत पर ही बैठे रहे। समय ज्यादा हुआ तो रूम में आ कर सो गए। 

अगली सुबह फिर जल्दी आँख खुल गयी। फटाफट तैयार हुए और चेकआउट कर सामान होटल में ही रख दिया। होटल के बराबर वाली चाय की दुकान पर पता किया तो परांठे मिल गए। आलू के परांठे और चाय का नाश्ता हुआ। पहाड़ों पर कितना भी पूड़ी, परांठे, पकौड़े खाओ, सब पच जाता है। नाश्ता कर वापस कल वाले रास्ते से कसौली पहुंचे। ज्यादा कुछ देखने के लिए बचा नहीं था तो इधर उधर ट्रेकिंग और de-ट्रेकिंग ही होती रही। जब दोपहर चढ़ने लगी तो बस स्टैंड पहुंचे और वहां से धरमपुर की बस में बैठे। बस चलने से पहले ड्राइवर को बोला कि रास्ते में होटल से सामान लेंगे तो वो बिना किसी दिक्कत के मान गया। पहाड़ वालों की ऐसी ही मानसिकता होती है। एक दुसरे की सहायता को हमेशा तैयार मिलते हैं। कुछ देर में बस चली। होटल के सामने पहुंचे तो ड्राइवर ने बिना हमारे कहे ब्रेक लगा दिए। हम जा कर सामान लाये और वापस बस में बैठ गए। धरमपुर पहुँच उतरे और वहां चंडीगढ़ की बस का इंतजार करने लगे। भूख लगी थी तो इस बार खाना कर्नल्स कबाब पर खाया। वैसे तो यह रेस्टोरेंट नॉनवेज खाने के लिए ज्यादा प्रसिद्द है लेकिन उनका वेज खाना भी बहुत बढ़िया था। खाना खाते खाते शताब्दी ट्रेन में सीट देखी पर ऑनलाइन सीट बुक नहीं कर पाए । सोचा कालका स्टेशन पहुँच एक बार कोशिश कर लेंगे। खाना खा कर बाहर आये तो कालका की बस तैयार थी। बस में बैठे और लगभग सवा घंटे में कालका पहुँच गए। शताब्दी के चलने में काफी समय था। स्टेशन पहुँच रिजर्वेशन ऑफिस से पता किया लेकिन ट्रैन फुल थी। वापस बस स्टॉप आये और बस का इंतजार करने लगे। तभी एक टैक्सी रुकी जो पंचकूला होते जीरकपुर तक जा रही थी। लपक कर टैक्सी में बैठ गए। गाड़ी फुल होते ही ये भाई चल पड़ा और जल्दी ही जीरकपुर भी आ गए। टैक्सी वाले ने जीरकपुर के बस स्टैंड के पास ही छोड़ा। उसे किराया दे स्टॉप पर आये। कुछ देर में चंडीगढ़ से दिल्ली जाने वाली वॉल्वो बस वहां से निकली जो बिलकुल फुल थी। अगली वॉल्वो बस एक घंटे बाद थी और उसमे सीट मिलने की कोई गारंटी भी नहीं थी। इसी सोच में थे कि जो भी अगली बस आएगी उसी में चल पड़ेंगे। इतने में हिमाचल रोडवेज की वॉल्वो बस आ गयी। काफी सीट खाली थी, शायद ये बस चंडीगढ़ बस स्टैंड हो कर नहीं आयी थी। बस में बैठे और चल पड़े घर की तरफ। 

देर शाम दिल्ली में एंटर हुए और 9 बजे तक घर भी पहुँच गए। वैसे तो इस पूरी यात्रा में हमारी सारी प्लानिंग धरी की धरी रह गयी, लेकिन इस सारी अनिश्चितता में भी जिस रोमांच का अनुभव हुआ, उसका कोई जवाब नहीं। साथ ही मुकुल भाई का साथ था तो यात्रा वैसे भी अच्छी रही। 

अब आप देखिये हमारे कसौली प्रवास के फोटो। 

जल्दी ही मिलते हैं अगले यात्रा वृतांत के साथ। 

धन्यवाद !!




कसौली बाज़ार 



कसौली क्लब 





स्वच्छ कसौली, स्वच्छ भारत 

चले सब वापस 

सनसेट पॉइंट से चंडीगढ़ 


रात को दूर चमकती हुई रोशनियाँ 

रूम काफी अच्छा था और रूम में ही झूला भी था 


होटल के पीछे से जाने वाली सड़क, जिस से हम 2 बार कसौली गए 

ये था हमारा होटल 

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