Thursday, 20 September 2018

Boys' Day Out : हिमाचल यात्रा....... भाग 1 .......

Boys' Day Out : हिमाचल यात्रा....... भाग 1 .......
Boys' Day Out : हिमाचल यात्रा....... भाग 2 .......
Boys' Day Out : हिमाचल यात्रा....... भाग 3 .......


   सितम्बर का महीना था। मानसून ख़त्म हो चुका था। मौसम से तल्ख़ गर्मी गायब हो रही थी। काफी दिनों से दिल्ली से बाहर जाना नहीं हुआ था इसलिए कहीं घूमने जाने की तीव्र इच्छा थी। बहुत से दोस्तों से इस बारे में बात हुई लेकिन सभी व्यस्त थे। ऐसे में हमारे अति घुमन्तु मित्र मुकुल जी याद आये। मुकुल मेरे पूर्व सहकर्मी और बहुत घनिष्ठ मित्र हैं। ये जनाब स्कूल के दिनों में NCC में रह चुके हैं, इनकी फाइटिंग स्प्रिट गजब की है और किसी भी हालत में जल्दी से हार नहीं मानते। घुमक्कड़ ऐसे कि महीने के कम से कम 2 वीकेंड ये दिल्ली से बाहर ही रहते थे। मुकुल से बात की और वो तुरंत तैयार हो गए। कहाँ जाना है इस पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई और मनाली का कार्यक्रम फाइनल हो गया। दोनों ने अपने अपने ऑफिस से छुट्टी अप्रूव करा ली। कार्यक्रम तय हुआ कि गुरुवार रात को टैक्सी से निकलेंगे और अगले दिन दोपहर तक मनाली पहुंचेगे। वहां से रविवार दोपहर को निकल सोमवार सुबह सुबह वापस दिल्ली पहुंचेगे। लेकिन हर प्लान की हुई बात पूरी होती तो किशोर कुमार जी गाना न गाते - "जाना था जापान, पहुँच गए चीन, समझ गए न !"

 तय तारीख की शाम को मैं ऑफिस से जल्दी घर आ गया, नहा धो कर तैयार हुआ और पैकिंग भी कर ली। रात 8 बजे मुकुल को अपने घर से निकलना था और 8:30 को मुझे पिक करना था। टैक्सी मुकुल ने ही बुक करा ली थी जोकि टाटा इंडिका थी। ठीक टाइम पर मुकुल का फ़ोन आया और मैं मीटिंग पॉइंट पर पहुँच गया। रात का खाना मुरथल पर खाना था इसलिए चलते हुए कुछ हलके स्नैक्स ले लिए थे। वहां से चले और मुख्य सड़क पर आये तो गाड़ी ने स्पीड पकड़ी। ध्यान से सुना तो कुछ धुक-धुक की आवाज आ रही थी। ड्राइवर को पूछा मगर उसने बोला कि कोई चिंता की बात नहीं है, गाड़ी ठीक है और ये सिर्फ सड़क की आवाज है। हम भी निश्चिन्त हो गए। दिल्ली से बाहर आते आते 10 बज गए। भूख कस कर लगी थी और मुरथल पहुँचने में एक घंटा और था। भूखे पेट कुछ बात भी नहीं होती इसलिए दोनों लोग शांत बैठे थे। मुरथल पहुंचे और गुलशन ढाबा पर रुके। खाना खाया, चाय पी कर वहां से चले और बातों का सिलसिला भी चल पड़ा। पता ही नहीं चला कि कब सुबह के 3 बज गए। ड्राइवर ने ब्रेक लिया और चाय के लिए रुक गए। देखा तो अम्बाला पार कर चुके हैं और रोपड़ के लिए मुड़ चुके हैं। चाय पी कर चले और दोनों को ही नींद आ गयी। बीच में एक बार आँख खुली तो हल्का सा उजाला हो गया था और हम रोपड़ पार कर पहाड़ों की चढ़ाई शुरू ही करने वाले थे। नींद का झोंका गहरा था और दोबारा सो गए। तभी एक दम झटके से गाड़ी रुकी तो आँख खुली। गाडी बंद हो गयी थी। ड्राइवर बार बार सेल्फ ले कर गाड़ी स्टार्ट करने की कोशिश कर रहा था लेकिन गाड़ी जैसे जिद्द पर अड़ गयी थी। बोनट खोला गया, इंस्पेक्शन हुआ लेकिन कोई फायदा नहीं था। हम भी बाहर आ गए।  ड्राइवर ने एक आखिरी कोशिश की लेकिन असफल रहा। हम बिलासपुर से थोड़ा पहले थे। ड्राइवर बोला कि शायद टाइमिंग बेल्ट टूट गयी है इसलिए बिलासपुर जा कर क्रेन का इंतजाम करता हूँ। एक वाहन में लिफ्ट ले वो चला गया। सुबह के 7 बजे थे। हम दोनों का ही मूड ख़राब था कि ट्रिप शुरू होने से पहले ही बिगड़ गया। धीरे धीरे दिन चढ़ता रहा और गर्मी बढ़ती गयी। हमारे पास पानी भी ख़त्म था। मैं गाड़ी के पास रुका और मुकुल जी पानी लेने आगे चले गए। काफी देर बाद वापस आये तो पानी की 2 बोतलें और कुछ बिस्किट, चिप्स ले कर आये थे। भूख लगी ही थी इसलिए हमने भी बिना ब्रश किये ही खा पी लिया। इतने में एक खुली जीप पास आ कर रुकी। पंजाब की गाड़ी थी और 3 लड़के बैठे थे। उन्होंने मदद के लिए पूछा। उनको बताया कि शायद टाइमिंग बेल्ट टूटी है और ड्राइवर पिकअप लाने बिलासपुर गया हैं। उनमे से एक बोला, "वीरजी, आप भगवान से विनती ही करो कि टाइमिंग बेल्ट न टूटी हो वर्ना आपका बहुत टाइम खराब होगा।" और हमने विनती करना शुरू कर दिया। 

करीब 10 बजे ड्राइवर महोदय पिकअप ले कर आये। गाड़ी को बाँधा गया और हम पिकअप वैन में बैठे। रास्ते में ट्रकों का लम्बा चौड़ा काफिला चल रहा था। धीरे धीरे हम बिलासपुर तक पहुंचे। वर्कशॉप पहुँच गाड़ी का निरीक्षण हुआ और प्रमुख मैकेनिक ने डिक्लेअर कर दिया कि टाइमिंग बेल्ट ही टूटी है। ठीक होने में कम से कम 2 दिन लगेंगे। हमारा बचा खुचा खून भी जैसे जम गया। मन ही मन जीप वाले वीर जी को धन्यवाद दिए गए। पास ही एक रेस्टोरेंट था वहीँ जा कर फ्रेश हुए और परांठे खाने लगे। पराँठों ने पेट भरा तो दिमाग चलना शुरू हुआ। चर्चा हुई कि बस से मनाली चलते हैं और वापसी में यही गाड़ी रविवार को ले लेंगे। तब तक गाड़ी ठीक भी हो जायेगी। लेकिन मनाली अभी काफी दूर था। और बस से जाते तो रात तक ही पहुँच पाते। साथ ही रविवार को भी दिन में जल्दी निकलना पड़ता ताकि समय पर बिलासपुर पहुँच टैक्सी लें और दिल्ली पहुंचे जाएँ। यानि कि हमारे पास घूमने के लिए सिर्फ शनिवार का ही दिन होता। इतनी दूर आना जाना भी करते, दो रात का होटल किराया भी देते और सिर्फ एक दिन ही घूम पाते। कार्यक्रम कहीं से भी फिट नहीं हो रहा था और इसमें बहुत से अगर मगर थे। हम दोनों ही अपने आप को समझा नहीं पा रहे थे कि हमें अब मनाली जाना चाहिए। यह चर्चा हमने रेस्टोरेंट काउंटर पर बैठे भाई साहब से भी की और वो भी हमारी बात से सहमत थे। हमारी बातें सुन एक सज्जन, जो वहां खाना खाने रुके थे, हमारे पास आ कर बोले, "मैं मनाली में सवारी ड्राप कर खाली टैक्सी ले शिमला जा रहा हूँ, अगर शिमला चलना है तो मैं छोड़ दूंगा। आपका घूमना भी हो जायेगा और मेरा कुछ किराया भी बन जायेगा।" बात में वजन था। शिमला वहां से सिर्फ 90 किलोमीटर था यानि समय लगना था ढाई या तीन घंटे। इसका मतलब हम शाम से पहले शिमला पहुँच जाते और पूरी शाम घूम सकते थे। बिना देर किये हमने शिमला का किराया तय किया, दिल्ली वाली टैक्सी का हिसाब किया और चल पड़े शिमला। 

शिमला का रास्ता शानदार था। कभी ऊंची चढ़ाई पर जाना होता और कभी सड़क नीचे दूर तक उतर जाती। हरियाली को कोई कमी न थी। इस सड़क पर ट्रैफिक भी कम था। ये वाले ड्राइवर साहब बहुत बातूनी भी थे इसलिए मन भी लगा रहा। खाना पीना हम कर के ही चले थे तो बीच में कहीं रुके भी नहीं। सीधा शिमला की टनल पर पहुँच गए। टैक्सी वाले भाई को यहीं तक जाना था। गाड़ी से उतर उनको पैसे दिया और होटल ढूंढने लगे। पास में ही होटल सुखसागर मिला। कमरे अच्छे और किराया वाजिब था तो चेक इन कर सामान रख दिया। होटल बिलकुल पहाड़ी के किनारे पर था और खिड़की से नजारा बड़ा ही मन मोहक था। नहा धो कर फ्रेश हुए और घूमने निकल पड़े। पास ही चाय की दुकान मिली। उनको 2 कप चाय और साथ में दो परांठे का बोला। गरम पकोड़ियां भी बन रही थीं तो एक प्लेट पकोड़ी भी ले ली। इतना खाना था तो एक एक चाय और बनती ही थी। वहां से चले तो ऊपर लक्कड़ बाजार जाने के लिए बोर्ड लगा था। उसी रास्ते पर बढ़ चले। सीढ़ियां चढ़ते चढ़ते दम फूल गया। लेकिन रिज रोड पर पहुंचे तो सब थकान दूर हो गयी। खूब भीड़ थी। लगभग पूरा रिज ही लोगों से भरा हुआ था। ठंडी हवा चल रही थी। हम पूरे दिन की परेशानियों को याद करते हुए कल का प्रोग्राम बनाने लगे। देर शाम तक घूमे। खाना खाया। कॉफ़ी भी पी ली और गुलाब जामुन भी खा लिए। वापस चले तो याद आया कि वही लम्बा रास्ता फिर से तय करना है। नीचे आये तो होटल सामने था। रूम में आये और बिस्तर पर ढेर हो गए। पूरा दिन परेशानियों में बीता लेकिन अंत में सब ठीक हो गया। घुमक्कड़ी आपको यही सिखाती है कि किसी भी स्तिथि में रुकना नहीं है, चलते जाना हैं..........

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मुकुल @ गुलशन ढाबा, मुरथल 



गड्डी खराब हो गयी 



बिलासपुर में इंतजार  
परांठे 

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