Boys' Day Out : हिमाचल यात्रा....... भाग 1 .......
Boys' Day Out : हिमाचल यात्रा....... भाग 2 .......
Boys' Day Out : हिमाचल यात्रा....... भाग 3 .......
इस पोस्ट को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
Boys' Day Out : हिमाचल यात्रा....... भाग 2 .......
Boys' Day Out : हिमाचल यात्रा....... भाग 3 .......
इस पोस्ट को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
अब तक आपने पढ़ा कि हम लोग दिल्ली से मनाली के लिए देर शाम टैक्सी से निकले। घर से निकलते ही गाड़ी में कुछ खराबी लगी लेकिन ड्राइवर से आश्वासन मिलने के बाद हम निश्चिन्त हो गए। रात भर गाड़ी ठीक चली लेकिन सुबह सुबह बिलासपुर से पहले गाड़ी बंद हो गयी और इसके ठीक होने में 2 दिन लगने वाले थे। परिस्तिथियाँ ऐसी बनीं कि हम मनाली की जगह शिमला पहुँच गए। अब अगले दिन का हाल पढ़िए।
पहाड़ों पर घूमना हो तो सुबह जल्दी ही उठ जाना चाहिए। गुरूवार की पूरी रात हम गाड़ी में बैठे बैठे सफर कर रहे थे और शुक्रवार का दिन भी टेंशन और सफर में ही निकला। शाम को थोड़ा मानसिक सुकून मिला तो शारीरिक थकान भी कम लगने लगी। इसीलिए काफी देर शिमला की मशहूर रिज पर टहलते रहे। रात को होटल पहुंचे और जल्दी ही सो गए। जल्दी सोये तो सुबह 5 बजे ही उठ गए। उठ कर खिड़की से बाहर का व्यू देखा तो शानदार पहाड़ी लैंडस्केप्स देख कर जैसे सांस रुक ही गयीं। दरअसल कल शाम को हम शिमला पहुंचे, होटल रूम में सामान रखा और घूमने निकल गए। खिड़की के परदे आधे ढके हुए थे तो खिड़की से बाहर देखने का मन भी नहीं हुआ। लेकिन सुबह सुबह व्यू देखा तो क्या कहने ! होटल का रूम अच्छा था, सर्विस बढ़िया थी, होटल वालों का attitude भी बढ़िया था, लोकेशन तो अच्छी थी ही, खाना हमने खाया नहीं इसलिए खाने की क़्वालिटी के बारे में कह नहीं सकता, लेकिन होटल की एक बात जो लाजवाब थी वो था कमरों की खिड़की से दिखने वाला नजारा । ख़ास तौर पर पीछे वाले कमरों का व्यू। चारों तरफ चीड़ के पेड़ों का घना जंगल था। बसावट काम थी। नीचे एक छोटा सा बैडमिंटन कोर्ट था। और दूर दूर तक ऊंचे पहाड़ और पहाड़ों पर घने जंगल। बिल्कुल पैसा वसूल !!! होटल सुख सागर को पूरे नंबर दिए जाते हैं।
फ्रेश हो कर टहलने के लिए बाहर आ गए। इतनी सुबह शिमला भी एक आम पहाड़ी शहर की तरह दिख रहा था वरना फिर तो पूरा दिन भीड़भाड़ वाला एक कमर्शियल डेस्टिनेशन ही बना रहता है। लगभग आधा घंटा शिमला की ऊंची नीची सड़कों पर टहलते रहे। पहाड़ों की ताजी हवा हमारे फेफड़ों से शहर के प्रदूषण को साफ़ करती रही। वापसी में एक एक कप चाय और बंद मक्खन भी खाया गया। होटल पहुँच कर नहा धो लिए, पैकिंग कर ली और चेक आउट भी कर दिया। प्लान था कि हो सका तो आज लक्कड़ बाजार में रुकेंगे या शिमला से बाहर कहीं और घूमने जायेंगे। सामान होटल के क्लॉक रूम में ही रखवाया गया। बाहर आये और कल वाली जगह पर दोबारा जा कर परांठे खाये। सुबह की गुलाबी ठण्ड में गरम आलू के परांठे और परांठो पर पिघलता हुआ मक्खन, साथ में अचार और स्टील के गिलास में चाय। वाह ! दिन की शुरुआत हो तो ऐसे। नाश्ता हुआ और फिर से रिज रोड की तरफ चल दिए। रिज रोड तक पहुँचते पहुँचते जाखू मंदिर जाने का मन भी हो गया। मुकुल ने रास्ते से थोड़ा प्रसाद लिया और दो छड़ियाँ भी किराये पर ले ली। मैं हैरानी में था कि अब तक तो पहाड़ चढ़ने में कोई दिक्कत नहीं हुई तो ये छड़ियाँ क्यों लीं गयीं। शायद जाखू मंदिर कि चढ़ाई और ज्यादा खड़ी होगी ! आगे जाने पर पता चला कि श्रीमानजी ने ऐसा क्यों किया।
जाखू में हनुमान जी का भव्य मंदिर हैं। हनुमान जी की 108 फुट ऊंची प्रतिमा भी है। मंदिर पहुंचो तो चारों तरफ का शानदार नज़ारा दिखाई देता है। शिमला रिज रोड से मंदिर जाने में तब शायद 30 मिनट लगे थे। अब तो सुना हैं कि रोप वे भी बन गया है! मंदिर की चढ़ाई का रास्ता अच्छा बना हुआ था। कहीं भी पैदल चलने में दिक्कत नहीं हुई। चढ़ाई ज्यादा तो थी पर ऐसी भी न थी कि हमें कहीं रुकना पड़ा हो। वैसे भी सुबह का टाइम था तो ज्यादा भीड़ भी नहीं थी। लेकिन पूरे रास्ते पर बहुत सारे बन्दर थे। भला जहां हनुमान जी का धाम हो वहां वानर क्यों न हों ! अब समझ आया कि हमारे वीर ने छड़ियाँ क्यों ली थीं। बन्दर इतने समझदार थे कि जिन लोगों के पास छड़ियाँ नहीं थीं उनके सामान पर झपट्टा मारने को तैयार थे। कुछ लोगों पर झपट्टा मारा भी गया था। पर जो लोग छड़ियाँ ले कर चल रहे थे उनको ऐसे आराम से जाने दिया जा रहा था जैसे कि कोई VIP सिक्योरिटी गेट से बिना चेकिंग के निकल रहा हो। हम लोग भी ऐसे ही निकले। मंदिर पहुंचे तो हलके पसीने से भीग चुके थे पर ऊपर इतनी ठंडी हवा थी कि पसीना सूखने में ज्यादा समय नहीं लगा। मंदिर पहुंचे, दर्शन किये, बाहर आकर प्रसाद खाने लगे, पानी पिया और बैठ गए। बैठे बैठे बहुत देर हो गयी लेकिन वापस नीचे आने का मन ही नहीं हो रहा था। ऐसा नहीं था कि थकान की वजह से चलना नहीं चाह रहे थे लेकिन ऊपर का वातावरण ही ऐसा शांति भरा था जो हमें उठने ही नहीं दे रहा था। खैर, थोड़ी देर में वापस चले और नीचे रिज रोड तक आ गए। समय देखा तो सिर्फ 10 बजे थे। नीचे आकर छड़ियाँ वापस की और रिज रोड पर ही घूमने लगे। थोड़ी देर में पूरा रिज फिर नाप डाला। आजू बाजू की सड़कें भी घूम ली गयीं। लक्कड़ बाजार घूम लिया। फोटो खींच लिए। रास्ते में एक पत्ती दिखी तो मुकुल ने बताया कि ये पत्तियां फिल्म मोहब्बते के पोस्टर में प्रयोग हुई थीं। नाम भी बताया था पर अब याद नहीं है। गूगल खोल कर देखा तो वही पत्ती थी। (नीचे फोटो में आप भी देखिये।) भूख लगने लगी थी और शेर-ए-पंजाब रेस्टोरेंट पर लंच के लिए आ गए। खाना खाते खाते बात हुई कि शिमला में और कहाँ घूमा जाये। कुछ और समझ ही नहीं आया। चैल हम जाना नहीं चाहते थे। और होटल में बैठ कर छुट्टी बिताना हमें पसंद नहीं है। निर्णय हुआ कि खाना खा होटल जाते हैं। सामान लेते हैं और सोलन जा कर रुकते हैं और वहीँ घुमते हैं।
वापस होटल पहुंचे और सामान ले कर बस स्टैंड निकल गए। बस स्टैंड के गेट पर पहुंचे तो चंडीगढ़ की बस जाने के लिए तैयार खड़ी थी। बस में काफी सीटें खाली ही थीं। सोलन की टिकट ले कर बैठ गए। बस में बैठे तो अगला प्रश्न सामने था कि सोलन जा तो रहे हैं पर वहां घूमने के लिए क्या क्या है। आपस में बातें हुई, इंटरनेट पर भी ढूँढा गया पर कुछ पक्का समझ नहीं आया। इतने में बस चल चुकी थी और शिमला से बाहर भी निकलने वाली थी। आखिरकार कंडक्टर को पूछा तो भाई ने बोला कि सोलन से अच्छा कसौली चले जाओ। रास्ता पूछा तो उसने बताया कि इसी बस से आगे धरमपुर उतरना और वहां से दूसरी बस लेना। बात जम गयी। वैसे भी इस पूरे ट्रिप में प्लानिंग के हिसाब से कुछ हुआ ही नहीं था तो चलो ऐसा भी सही। हमने सोलन से आगे धरमपुर तक टिकट ले ली। कंडक्टर ने जैसे ही टिकट हाथ में दी तो बोला, "भाईसाहब, कसौली में ज्यादा होटल नहीं है तो अपना इंतजाम देख लेना।" वाह ! हम दोनों ने एक दुसरे देखा। दोनों की आँखों में एक ही बात थी। भाई ने सबसे क्रूशियल जानकारी सबसे बाद में दी। फटाफट गूगल खोला गया। वाकई होटल्स बहुत लिमिटेड थे। और जो थे वो भी बहुत महंगे। ऊपर से आज शनिवार भी था। कसौली चंडीगढ़ से बहुत पास है इसलिए वीकेंड को बहुत से लोग कसौली आ जाते हैं। तभी आज सारे होटल बजट से बाहर थे। कोई रुपये 4000 तो कोई 6000 । हद है भाई !! सिर्फ रात रुकने का इतना पैसा क्यों देंगे।
अब हमारी सोच वापस सोलन की तरफ मुड़ने लगी । लेकिन सोलन जम नहीं रहा था। हमारी बस शिमला से भी काफी दूर आ चुकी थी। इसलिए वापस भी जाते तो बहुत टाइम खराब होता। ऐसा लगा कि बड़ी गलती हो गयी और इस से अच्छा तो शिमला में ही एक दिन और घूम लेते। मन में बड़ी दुविधा थी। शिमला वापस चलें, सोलन उतर जाएँ या चंडीगढ़ जाएँ। शिमला बहुत पीछे रह गया था, सोलन में ऐसा कुछ घूमने का समझ नहीं आ रहा था और कसौली बहुत महंगा था। शाम तक कसौली घूम कर चंडीगढ़ जाने का विचार भी बना लेकिन ये पक्का नहीं था कि देर शाम कसौली से चंडीगढ़ की बस मिलेगी या नहीं। ऐसे में अपनी टैक्सी बहुत याद आयी। सोचा, कि अगर टैक्सी साथ होती तो कोई दिक्कत नहीं होती। सोलन भी रुक जाते, कसौली भी घूम लेते और शिमला जा कर भी नाईट स्टे कर लेते। इसी दुविधा में हम सोलन तक पहुँच गए। सोलन बस स्टैंड पर कुछ सवारियां उतरीं और कुछ चढ़ी। बस चलने को हुई तो कंडक्टर ने एक बार हमारी तरफ देखा और अपनी सीटी फूंक दी। यानि सोलन का ऑप्शन भी गया। अब तो सिर्फ चंडीगढ़ और कसौली ही बचा था। पूरी टेंशन में हम मन ही मन अपने टैक्सी वाले को कोस रहे थे। न वो खराब गाड़ी ले कर चलता और न ही हमारा ट्रिप बर्बाद होता। आखिर में ये ऑप्शन भी सोचा गया कि क्यों चंडीगढ़ में रात को रुक कर एक दिन खराब किया जाये। इस से अच्छा तो शाम की शताब्दी पकड़ दिल्ली ही चलते हैं। बस चलती रही और साथ साथ हमारा डिस्कशन भी चलता गया।
होटल रूम से व्यू |
होटल रूम से व्यू |
रिज जाने का रास्ता |
ऐसी खाली रिज सिर्फ सुबह ही मिल सकती है |
ये है वो पत्ती |
No comments:
Post a Comment