Tuesday 15 January 2019

जयपुर की सैर: भाग 4...

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2.  जयपुर की सैर: भाग 2...
3.  जयपुर की सैर: भाग 3...
4 . जयपुर की सैर: भाग 4... 

हवामहल देख कर वापस बाहर आये। दोपहर के साढ़े तीन बज रहे थे। जयपुर में सर्दी का नामोनिशान नहीं था। बैग भर गरम कपडे बेकार ही लाद कर लाये। 

अब हमें थोड़ी खरीदारी करनी थी - बंधेज के सूट और राजस्थानी साड़ियाँ लेनी थीं। पर हम बापू बाजार या जौहरी बाजार नहीं जाना चाहते थे। वहां बहुत जबरदस्त मोलभाव होता है और ख़ास तौर पर अगर कोई पर्यटक हो तो कहना ही क्या । हमलोग ऐसी जगह से खरीदारी करना चाहते थे जहाँ स्थानीय लोग शॉपिंग के लिए जाते हों। इसलिए मैनें अपने स्थानीय मित्र महेश गौर जी को फ़ोन लगाया और इस बारे में उनसे सलाह मांगी। वो बोले कि पहले वो अपने घर से सलाह ले लें। फिर हमें बताएँगे। बात भी सही थी!!

जब तक उनकी सलाह आती हम सामने बाजार के बरामदे में टहलते रहे। सभी दुकानें बाहर से एक ही रंग में थीं। हल्का गुलाबी रंग !! 

थोड़ा आगे बढे तो सामने रामचंद्र कुल्फी वालों की दुकान दिखी। दुकान पर ग्राहकों की बहुत भीड़ थी। मेनू देखा तो बहुत से शेक्स, कुल्फियां और फालूदा। इतने ऑप्शन देख कर वैसे ही कन्फ्यूजन हो गया। ऊपर से ऐसे मौसम में ठंडा खाने के नुक्सान भी थे। एक नजर बच्चों की तरफ देखा तो वो दोनों पूरे आग्रह से हमारी तरफ ही देख रहे थे। चलिए !! कल तो रात में कुल्फी खायी थी, अब तो फिर भी दोपहर ही है। ये सोच कर काउंटर पर गए। दो मलाई कुल्फी और एक अन्नानास शेक का टोकन लिया। पहले शेक लिया जो बहुत ही ठंडा था। टेस्ट बढ़िया था। भरपूर गर्मी में और भी अच्छा लगता। फिर कुल्फियाँ लीं। चलते चलते खाते रहे और त्रिपोलिआ की तरफ बढ़ते रहे। 

त्रिपोलिआ के सामने पहुँच कर न्यू गेट की तरफ बाएं मुड़ गए। थोड़ा आगे चले तो एक छोटे से रेस्टोरेंट के बाहर चूल्हे पर बेजड़ की रोटी बन रही थी। बेजड़ यानि गेहूं, जौ और चने का आटा। साथ में आलू, प्याज और पनीर की तीखी सब्जी थी। आज लंच कर चुके थे इसलिए सोचा कि कल आकर जरूर टेस्ट करेंगे। 

थोड़ा और आगे चले। एक और छोटा सा रेस्टोरेंट मिला। बाहर शोकेस में कचौरियां और मिर्ची बड़े रखे थे। ध्यान आया कि अभी तक जयपुर की मशहूर कचौड़ियां तो चखी ही नहीं हैं। हम लोग चलते चलते थक भी गए थे। इसलिए सोचा कि यहाँ कुछ खा भी लेते हैं और थोड़ा रेस्ट भी हो जायेगा। अंदर बैठने के लिए 5 - 6 छोटी छोटी टेबल लगी थीं। एक टेबल खाली थी। हम वहीँ जम गए। सामने मेनू रखा था। देखा तो पता लगा कि रेस्टोरेंट का नाम सम्राट रेस्टोरेंट है। रेस्टोरेंट काफी व्यस्त था और रेस्टोरेंट से ज्यादा उनके वेटर व्यस्त थे। 2 - 3 बार बुलाने पर एक सज्जन आये। उनको एक प्याज कचौड़ी और दाल की कचौड़ी, दही के साथ, लाने के लिए बोला। बच्चे बाहर बर्गर बनता हुआ देख आये थे, तो उनके लिए एक बर्गर आर्डर कर दिया। 

दोनों कचौड़ियां 2 मिनट में सामने थीं। साथ में 2 पिचकू बॉटल्स भी आ गयीं। एक लाल और एक हरे रंग की। अरे वाह !! शायद मैंने पहली बार राजस्थान में प्याज की कचौड़ी के साथ चटनियाँ देखीं थीं। मुझे फेसबुक पर घुमक्कड़ ग्रुप की सदस्य, मिनाक्षी जी, जो जयपुर से ही हैं, का चैलेंज याद आ गया। काफी समय पहले एक पोस्ट में मैंने जयपुर की मशहूर रावत की कचौड़ी का जिक्र करते हुए लिखा था कि जयपुर में प्याज की कचौड़ी बिना किसी चटनी के ही मिलती है। तब उन्होंने उस पोस्ट पर कमेंट किया था, "भैया, जब आप जयपुर में चटनियों वाली कचौड़ी खा लोगे, तो बाकि सब कचौड़ियों को भूल जाओगे।" 

और उनकी ये बात शत प्रतिशत सही भी साबित हुई। दोनों कचौड़ियां बहुत ही स्वादिष्ट थीं। बच्चों का बर्गर आने में समय लगा तब तक दोनों चटखारे ले कर कचौड़ी ही खाते रहे। खा पी कर हमने बाहर काउंटर पर बिल दिया। महेश भाई का फ़ोन अब तक नहीं आया था। 

इसलिए हम न्यू गेट ही तरफ ही बढ़ गए। यहाँ से थोड़ा ही आगे जयपुर की मशहूर साहु चाय की दुकान है। दुकान के बाहर अंगीठी पर पीतल के भगोने में देर तक उबली चाय पीने के लिए लोग शहर के दूसरे कोने से भी यहाँ आते हैं। इनकी चाय को बनाने में पानी का प्रयोग नहीं होता, शुद्ध दूध में ही चायपत्ती और चाय का मसाला डाला जाता है । गरमा गरम इलाइची वाली चाय बहुत ही रिफ्रेशिंग होती है। 

जैसे ही हम दुकान के बाहर पहुंचे तो देखा कि बहुत भीड़ लगी थी। देखा तो कोई न्यूज़ एंकर लोगों का इंटरव्यू कर रहे थे। अरे ये तो भैयाजी हैं ! भैयाजी कहिन प्रोग्राम वाले। ये भी यहाँ चाय पीने आये थे और लोग इनके साथ सेल्फी लेने के लिए धक्का मुक्की कर रहे थे। हमने सेल्फी नहीं ली। #gdsfacetoface कैंपेन आने वाला था। उसके लिए इनका एक फोटो सामने से ले लिया।

 फिर चाय की तरफ रुख किया। काउंटर पर खड़े अंकल को 3 चाय के लिए बोला। अंकल की मूंछे जितनी रोबदार थीं, उनका व्यवहार उतना ही सरल और विनम्र था। वो इतने विनम्र थे कि जिस भी ग्राहक ने उनको चाय पीने के बाद पैसे दिए, इन्होने पहले हाथ जोड़ ग्राहक का अभिवादन किया और फिर पैसे लिए। उनकी विनम्रता और चाय का बेहतरीन स्वाद, दोनों ही बेमिसाल थे। जब तक हमारी चाय आती, मैंने झाँक कर अंदर दुकान में देखा। अंदर 3-4 बेंच थे जिसमे सिर्फ एक पर लोग बैठे थे। अंकल शायद मेरी इच्छा समझ गए और हाथ जोड़ कर बोले, "आप अंदर बिराजो सा। चाय अंदर ही आ जाएगी। "

हम लोग अंदर आ कर बैठ गए। पीछे पीछे चाय भी आ गयी। चाय इतनी बढ़िया थी कि एक एक कप और मंगानी पड़ी। कीमत थी 15 रुपये प्रति कप। अंदर वसुंधरा राजे जी की यहाँ चाय पीते हुए तस्वीर लगी थी। हम अभी चाय ही पी रहे थे कि महेश जी का फोन आ गया। उनहोने हमें स्थानीय बाजारों के बारे में बताया और फिर ये सारे नाम हमें मैसेज भी कर दिए। गूगल मैप पर पहले बाजार की लोकेशन डाली तो वो यहाँ से बहुत पास था। हमने चाय के पैसे दिए और वापस त्रिपोलिआ की तरफ चल पड़े।

10 मिनट बाद गूगल मैप ने बाएं मुड़ने का इशारा किया। देखा कि सामने लाल पत्थर पर सड़क का नाम लिखा था, "लाल जी सांड का रास्ता।" ये बिलकुल पुराने शहर के बाज़ारों की तरह था। दोनों तरफ दुकानें और सड़क पर भीड़। थोड़ा आगे चले तो साड़ियों की दुकानें शुरू हो गयीं। कुछ दुकानें थोक की भी थीं। कीमत बिलकुल वाजिब थी। और मोलभाव बहुत ही कम था। हमारी शॉपिंग अगले एक घंटे तक चली।

इस बीच हमें भंवर लाल कैलाश चँद सौंध्या हलवाई की दुकान मिली। यहाँ बेसन के नमकीन सेव तले जा रहे थे। कुछ मिठाइयां भी बनी हुई थीं। पूरी दुकान सिर्फ एक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट ही थी। कोई काउंटर नहीं, कोई शोकेस नहीं। एक सज्जन दुकान के किनारे सड़क पर कुर्सी डाल कर बैठे थे। वही असली इंचार्ज थे। उनसे बात की तो पता लगा कि यही उनका सेल्स पॉइंट भी था। हमने नमकीन और मूंग थाल टेस्ट किया। और घर के लिए पैक करा लिया।

अब शाम के 7 बजे से ज्यादा का समय हो गया था। होटल वापस जाने के लिए टैक्सी ली। रास्ते में खाना खाने के लिए टोंक रोड पर कान्हा स्वीट्स के तनसुख रेस्टोरेंट पर रुके। बच्चा पार्टी के लिए वेज चाउमीन और हमारे लिए एक राजस्थानी थाली आर्डर की। चाउमीन तो बढ़िया थी ही पर थाली में मजा आ गया। राजस्थानी खानपान के बहुत से स्वाद इस थाली में थे। दाल, बाटी, चूरमा, गट्टे की सब्जी, केर सांगरी, मिस्सी रोटी, छाछ, पापड़ और पुलाव - ये सब 2 लोगों के लिए काफी था।

खाना खा कर होटल पहुंचे। हमारे एक डिस्ट्रीब्यूटर होटल की लॉबी में ही मिल गए। वो भी इसी होटल में रुके थे। उनके साथ भी आधे घंटे की मीटिंग हो गयी। इस बीच फॅमिली रूम में जा चुकी थी। मीटिंग ख़त्म कर मैं भी रूम में पहुंचा। दिन भर की थकान मिटाने की लिए गुनगुना पानी पीने से बेहतर और कोई इलाज नहीं। आज का दिन बढ़िया रहा। कल शाम को हमारी वापसी थी।

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तनसुख में राजस्थानी थाली 






ये हैं साहू चाय वाले अंकल 






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