Wednesday 10 October 2018

वैष्णो देवी यात्रा.. भाग 1..

वैष्णो देवी यात्रा.. भाग 1..
वैष्णो देवी यात्रा.. भाग 2..


"चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है।"   

पूरे उत्तर भारत में हिन्दुओं के लिए वैष्णो देवी माता से बड़ा शायद और कोई तीर्थ नहीं है। अधिकांशतः लोगों की यही मान्यता है कि वैष्णो देवी के दर्शन जरूर हों। कुछ लोग यहाँ हर साल आते हैं और कुछ भाग्यशाली तो साल में कई बार यहाँ दर्शन कर आते हैं। यह यात्रा वृतांत मेरी पहली वैष्णो देवी यात्रा के बारे में है।

इस यात्रा में मेरे दो सहकर्मी भी मेरे साथ थे। गर्मियों के दिन थे और बाहर कहीं घूमने जाने की बहुत इच्छा थी। कई लोगों से इस बारे में बात हुई लेकिन कुछ पक्का नहीं हो पाया। आखिर मेरे colleague तरुण ने सहमति दी कि हमें बाहर कहीं घूमने जाना चाहिए। अब दो से भले तीन, तो निशांत से भी बात हुई और वो भी मान गया। सवाल था कि कहाँ और कब जाने का प्लान हो। चर्चा होती रही और आखिर सुईं वैष्णो देवी पर आ पहुंची। हम तीनों ही अब तक कभी भी वैष्णो देवी नहीं गए थे इसलिए तीनों ही फटाफट राजी हो गए। और आखिर होते भी क्यों नहीं, जब माता का बुलावा आ ही गया था।! 

क्योंकि ये प्लान मैंने initiate किया था इसलिए कब जाना है, कैसे जाना है और वापस कब आना है - इस सब का जिम्मा मुझे सौंप दिया गया। पहले प्लान गाड़ी से जाने का बना कि तीन लोग हैं और तीनों ही गाड़ी चला लेते हैं तो कोई दिक्कत नहीं होगी। तभी ध्यान आया कि दिल्ली से तो चले जायेंगे पर वापस कैसे आएंगे। आखिर कटरा से आगे की यात्रा तो पैदल ही थी। और जब इतना पैदल चलेंगे तो गाड़ी चलने लायक नहीं रहेंगे। इसलिए कार से जाना कैंसिल हुआ और ट्रेन से जाने का फाइनल हुआ । मैनें हम तीनों का schedule देखते हुए सितम्बर माह के तीसरे शक्रवार की शाम की ट्रेन से जम्मू तक टिकट बुक कर ली। वापसी की टिकट रविवार रात की थी। उन दिनों कटरा का स्टेशन शुरू नहीं हुआ था और वैष्णो देवी जाने के लिए जम्मू तक ट्रेन लेनी पड़ती थी। इस प्रोग्राम का फायदा ये था कि शनिवार और रविवार की छुट्टी तो थी ही और हमें वापस आ कर सिर्फ सोमवार की छुट्टी लेने थी (वो भी अगर कोई ऑफिस जाने की हालत में न हो तो, वर्ना इसकी भी कोई जरूरत नहीं थी) । सितम्बर में आम तौर पर स्कूलों में परीक्षाएं चलती रहती हैं और नवरात्रि भी काफी दूर थे इसलिए वैष्णो देवी पर भीड़ भी अधिक नहीं होती। ये सब सोचते हुए हमने इस यात्रा के लिए सितम्बर का महीना चुना जो कि सही भी रहा। 

निश्चित दिन शुक्रवार को हम सबने सीधा नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मिलना था। हमारी ट्रेन शायद शाम 8:50 पर थी। तीनों ही घर से खाना पैक करा कर लाने वाले थे और हमारा डिनर ट्रेन में ही होना था। टिकट की डिटेल्स मेरे मोबाइल में थी और मैंने ये डिटेल्स दोनों को मैसेज भी कर दी थीं। मैं घर से कुछ जल्दी ही निकल गया और रास्ते में ज्यादा भीड़ न होने के कारण स्टेशन भी काफी जल्दी पहुँच गया। साथ में हल्का सा बैग था जिसमें जरूरत भर के कपडे, एक जोड़ी कपडे दर्शन के लिए और एक स्वेट शर्ट था। क्यूंकि भवन से वापस आते हुए रात हो ही जानी थी, इसलिए मौसम को देखते हुए स्वेट शर्ट या कोई और गरम कपडा जरूरी था ।

प्लेटफार्म पहुँच पहला फोन निशांत को किया। 

"हाँ जी, कहाँ पहुंचे निशांत ?"
"बस, 15 मिनट और लगेंगे। आप कहाँ हो ?"
"मैं तो पहुँच गया प्लेटफार्म पर"
"ओके। भाईसाहब से बात हुई?" ( भाईसाहब, यानि कि श्रीमान तरुण जी )
"अभी अगला फ़ोन उन्हीं को कर रहा हूँ।"
"ठीक है करिये। तब तक मैं भी पहुँचता हूँ।"

फिर तरुण को फोन किया। तरुण ने बताया कि उसके पापा उसे मेट्रो स्टेशन छोड़ रहे हैं और वो मेट्रो से सीधा नयी दिल्ली स्टेशन आएगा। ये सब बातें निपटा कर मैं प्लेटफार्म पर घूमने लगा। ट्रेन के समय में अभी 45 मिनट से ज्यादा का टाइम था। थोड़ी देर में निशांत भी आ पहुंचा। बतकही चालू हो गयी। समय का पता ही नहीं लगा। तभी ट्रेन के प्लेटफार्म पर आने का अनाउंसमेंट हुआ और थोड़ी देर में ट्रेन आ पहुंची। हमने अपना कोच ढूँढा और अपनी सीट पर आ गए। आ कर सीट देखने लगे तो पता चला कि हमारी तीन सीटों में दो सीटें मिडिल और एक सीट ऊपर वाली थी। और नीचे वाली दोनों सीटों पर एक बुजुर्ग दंपत्ति थे। यानि किसी भी हालत में हम देर तक बैठ कर बात नहीं कर सकते थे। चलो अच्छा है ! जल्दी सोयेंगे। वैसे भी कल बहुत पैदल चलना था। तभी याद आया कि तरुण तो अभी पहुंचा ही नहीं है। तरुण को फोन किया और पूछा कि वो कहाँ तक पहुंचा है। तभी भाई ने धमाका कर दिया। 

भाई साहब बोले, "Don't Worry! मैं रास्ते में ही हूँ और 9:30 से पहले ही स्टेशन पहुँच जाऊँगा।" 
"9:30? अरे सरकार, आपको याद भी है कि ट्रेन कितने बजे की है?"
"हाँ जी सर, बिलकुल याद है। 9:50 की है।"
"जी नहीं, 8:50 की है।"
"क्या!!!! सर, Don't Tell me. "
"हाँ जी।"

इसके बाद हमारा फोन लगातार चलता रहा। बड़ी मुश्किल से प्रोग्राम बना था और हम बिलकुल भी नहीं चाह रहे थे कि इसमें कोई भी चेंज हो। इसलिए हम तरुण से उसकी लोकेशन पूछते रहे। ट्रेन के चलने का समय होने ही वाला था और वो अभी भी दूर था। भाग्य से ट्रेन भी थोड़ा लेट ही चली। आखिर तक हम तरुण के साथ टच में रहे। लेकिन जब हमारी ट्रेन चली तो वो नयी दिल्ली मेट्रो स्टेशन के गेट से बाहर निकल रहा था। यानि कि ट्रेन के चलने और तरुण के प्लेटफार्म तक पहुँचने में लगभग 10 मिनट का अंतर रह ही गया। हमारा मूड बिल्कुल ही ऑफ हो गया था। 

मैनें तरुण को फिंर फ़ोन किया। 
"भाई, आखिर ये misunderstanding कैसे हो गयी ! आखिर सारा प्लान डिसकस करने के बाद ही टिकट बुक हुए थे।"
"अरे, मुझे खुद कुछ नहीं पता। लेकिन मुझे शुरू से यही लग रहा था कि ट्रेन का टाइम 9:50 ही है। बल्कि जब शाम को स्टेशन से आपका पहला फोन आया तो मैं तो खुद आपको पूछने वाला था कि 9:50 की ट्रेन के लिए आप 8 बजे से पहले ही स्टेशन क्यों पहुँच गए।"
"तो तरुण भाई, पूछ ही लेना था न तब। शायद आप ट्रेन पकड़ ही लेते !"

और हम दोनों ही हँस पड़े। एक बार हँसे तो टेंशन कम हुई और दिमाग चला। मैंने तरुण को बोला कि स्टेशन पर पता करें कि जम्मू की अगली कोई ट्रेन है क्या। नहीं तो लाल किला जा कर जम्मू की कोई प्राइवेट बस पकड़ लें। 

थोड़ी देर में तरुण का वापस फोन आया कि पुरानी दिल्ली से एक ट्रेन है अगले कुछ एक घंटे में और वो उसी ट्रेन को पकड़ने के लिए जा रहा है। हमने फ़ोन काटा और प्रार्थना करने लगे कि उस ट्रेन में कोई एक सीट मिल जाये और कल सुबह हम इकट्ठे जम्मू पर मिल जाएँ। हमारी ट्रेन भी रेंगती हुई दिल्ली से बाहर जा रही थी और हम तरुण में फ़ोन के इंतजार में बैठे थे। काफी देर बाद तरुण का फोन आया कि ट्रेन तक पहुँच गया है। टी टी से बात हो गयी है, सीट मिल जाएगी। वो बाहर जा कर जनरल टिकट ले आया था और अपनी सीट पर पहुँच गया था। थोड़ी देर में वापस फ़ोन आया कि ट्रेन चल पड़ी है, टी टी ने पेनल्टी बना कर सीट अलॉट कर दी है और अब कल सुबह मिलते हैं। 

हम भी चिंता मुक्त हुए, तो तेज भूख का अहसास हुआ। दोनों ने अपना खाना खोला और खाना खाने लगे। टी टी महोदय आये तो उनको हमारे तीसरे यात्री के न पहुँच पाने के बारे में बताकर अपनी टिकट चेक कराई। खाना खा कर, दोनों मिडिल सीट्स पर बिस्तर लग गया। बातें करते करते सो गए। 

सुबह के समय फोन बजा तो आँख खुली। देखा तो तरुण का फ़ोन था। भाई साहब बोले कि वो तो जम्मू पहुँच भी गए। अब हुआ ऐसे कि तरुण की ट्रेन हमारी ट्रेन से तेज थी। बाद में चल कर भी उनकी ट्रेन पहले जम्मू पहुँच गयी। हमने उनको स्टेशन पर रुकने का बोला। अपनी ट्रेन में पता किया कि अभी हमें जम्मू पहुँचने में आधा घंटा और लगेगा। हम भी फ्रेश हुए और स्टेशन आने का इंतजार करने लगे। स्टेशन पहुँचने से जरा पहले तरुण को फ़ोन किया तो वो बोले कि ट्रेन में ही एक ग्रुप मिला था और उन लोगों ने जम्मू से कटरा के लिए 9 सीटर वाहन बुक किया और तरुण जी भी उनके साथ ही निकल लिए। 

वाह भैया ! पार्टी बदल लिया !!!

खैर, जम्मू स्टशन पर उतरे। वेटिंग रूम में जा ब्रश वगैरह किया और वापस प्लेटफार्म पर आ कर चाय पी। चाय अच्छी थी लेकिन मात्रा कम थी, इसलिए एक एक और ले ली। स्टेशन से बाहर आये तब तक ट्रेन की ज्यादातर भीड़ छंट चुकी थी। सामने ही एक टैक्सी वाला भाई मिल गया। गाड़ी थी उनकी एम्बेसडर और गाड़ी का रंग बिलकुल सफ़ेद। यानि शाही फीलिंग्स आनी ही थी। किराया तय हुआ और हम लोग निकल पड़े। जम्मू पार होने में ज्यादा समय नहीं लगा। थोड़ा आगे जाते ही पहाड़ी रास्ता शुरू हो गया। बल खाती सड़क, सड़क किनारे हलके हलके पेड़, नीचे घाटी, रास्ते में ढेर से बन्दर, शायद एक सुरंग भी मिली थी। और अम्बेसडर का शानदार सफर। मैंने एम्बेसडर टैक्सी में बहुत सफर किया है। ऐसी शानदार और आरामदायक गाड़ी है कि पूछिए मत !

कुछ देर बाद हम कटरा के पास पहुँच गए। दूर से ही कटरा शहर दिख रहा था, लेकिन मेरी आँखे पहाड़ पर माता की भवन को ढूंढ रही थीं। बाद में पता चला कि भवन तो पहाड़ पर दूसरी तरफ है और कटरा से दिखाई भी नहीं देता है। तरुण को फिर से फोन किया। वो बोला कि पहुँच कर होटल ले लिया है। हम सीधा होटल पहुंचे। गाड़ी वाले को किराया दे विदा किया। सीधा रूम में आये और आराम करने लगे। थोड़ी देर में नहाये और तैयार हो गए।

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3 इडियट्स 

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