Saturday 13 October 2018

वैष्णो देवी यात्रा.. भाग 2..

वैष्णो देवी यात्रा.. भाग 2..

इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। 

अभी तक आपने पढ़ा कि मैंने और मेरे 2 सहकर्मियों, तरुण और निशांत, ने वैष्णो देवी जाने का प्रोग्राम बनाया। हमारी ट्रेन की टिकटें बुक हुई और तरुण ने ट्रेन मिस कर दी। इसके बाद तरुण ने एक दूसरी ट्रेन पकड़ी और हमसे पहले जम्मू व कटरा पहुँच गए। कटरा के होटल में हम तरुण को मिले। अब आगे.....

होटल में थोड़ी देर सुस्ता कर और नहा धो कर तैयार हुए। गर्मी बहुत ज्यादा नहीं थी इसलिए यही निर्णय हुआ कि भवन तक की चढ़ाई अभी शुरू करते हैं और देर रात तक वापस आ जायेंगे। शायद हम लोग कुछ ज्यादा ही overconfident थे। होटल से निकले और एक ढाबे पर पहुँच गए। खाने का आर्डर दिया। कटरा पर सभी ढाबे और रेस्टोरेंट बिना प्याज और लहसुन का खाना ही परोसते हैं। ऐसे में हमने भी दाल, एक सब्जी और तवे की रोटियों का आर्डर किया। साथ में चाय भी पी। बिल ठीकठाक ही रहा। बिल दे कर यात्रा की पर्ची बनवाने के लिए गए। भीड़ बहुत ही कम थी। जल्दी ही हम तीनों की पर्ची बन गयी। इसके बाद वापस होटल गए। एक ही बैग में तीनों के कपडे रख लिए। एक जोड़ी कपडे दर्शन के लिए, तीनों के टॉवेल्स और एक एक गरम कपडा रात के लिए। तीनों को बारी बारी ये बैग ले कर चलना था। 

होटल से बाहर आ कर एक ऑटो लिया और यात्रा के मुख्य द्वार तक पहुंचे। सिक्योरिटी जांच हुई और आगे बढे। आगे बढ़ते ही ढेर सारी दुकानें थीं जहाँ माता वैष्णो देवी से सम्बंधित बहुत सी चीजें मिल रही थीं। थोड़ा आगे बढे और बाणगंगा के किनारे पहुँच गए। सोचा कि चलो बाणगंगा के किनारे थोड़ी देर बैठ लें। किनारे की चट्टानों पर बैठ कर जैसे ही पैर पानी में डूबे तो ठन्डे पानी का अहसास हुआ। पहाड़ों का पानी तो वैसे भी ज्यादा ही ठंडा होता है और ये तो बहता हुआ पानी था। थोड़ी देर बाद यहाँ से चले। एक और चेकपोस्ट पर सिक्योरिटी जाँच हुई। असली चढ़ाई अब शुरू हुई। ऊपर जाने  के लिए सीढ़ियां और रैंप दोनों ही विकल्प हैं। हालांकि सीढ़ियों का प्रयोग शायद ही कोई करता होगा। थोड़ा आगे बढे तो ढेर सारे खच्चर खड़े थे। इतने खच्चर खड़े हों तो उनकी लीद भी होनी ही थी। कुछ पालकी वाले भी थे और कुछ लोग पिट्ठू के लिए भी थे। ये पिट्ठू छोटे  बच्चों और सामान के लिए थे। खैर, हमें न खच्चर करना था, न ही पालकी और न ही पिट्ठू। तो हम आगे बढ़ने लगे। तभी दूर एक हेलीकाप्टर उड़ता हुआ दिखाई दिया। यह कटरा से सांझी छत तक की सेवा थी। पूछने पर पता लगा कि इस हेलीकाप्टर सेवा का किराया तब रुपये 1200 था। फिर क्या था !! तरुण ने हमारी खिंचाई शुरू कर दी कि हेलीकाप्टर में जाना है। और विश्वास करिये कि उनका यह गीत ऊपर भवन तक भी नहीं छूटा। 

हमलोग धीरे धीरे आगे बढ़ते गए। कमर पर लटका बैग एक से दुसरे को पास करते गए। लेकिन अब तक हमें अपनी गलती का आभास हो गया था। दरअसल कटरा तक तो मौसम ठीक था। लेकिन पहाड़ की ऊँचाई पर गर्मी ज्यादा लग रही थी और चढ़ाई की वजह से वैसे भी पसीना बहुत आ रहा था। अब हम लोग भी यही सोच रहे थे कि हमें दिन छिपने पर ही चढ़ाई शुरू करनी थी। लेकिन अब तो यात्रा शुरू हो ही गयी थी तो न ही रुक सकते थे न ही वापस जा सकते थे। इसलिए धीरे धीरे चढ़ते रहे। बीच में पानी, जूस इत्यादि पीते। कभी छाया मिलजाती तो बैठ कर आराम कर लेते। यानि धीमी गति से ही सही, हम लोग आगे बढ़ रहे थे। अधकुंवारी पहुँचते शाम हो गयी। यहाँ पर देवी ने एक गुफा में 9 महीने तक शिव जी की पूजा की थी। जब भैरव नाथ ने उनको यहाँ ढूंढ लिया तो देवी ने अपने त्रिशूल से गुफा में दूसरी तरफ तक एक रास्ता बनाया और भवन की तरफ बढ़ गयीं। अधकुवारी के दर्शन करने के साथ साथ हर भक्त इस गुफा से हो कर भी निकलते हैं। हमने भी दर्शन किये और बाहर आकर थोड़ा आराम करने बैठ गए। अब तक हम आधा रास्ता पूरा कर चुके थे और अभी तक लगभग 3 घंटे चल चुके थे। सूरज छिप चुका था तो गर्मी से राहत थी। यहाँ पर हमने कॉफी पी और हल्का सा नाश्ता किया। 

अधकुंवारी से भवन जाने के लिए एक रास्ता सांझी छत हो कर जाता है। अभी एक नया रास्ता भी बन गया था जो कि पुराने रास्ते से थोड़ा आसान था। यहाँ चढ़ाई भी कम थी और रास्ता नया बना होने के कारण सुविधाएं भी ज्यादा थी। साथ ही इस रास्ते पर खच्चरों का आना जाना निषेध था। हमने वहां पता किया तो सबने यही कहा कि इस नए रास्ते से ही भवन तक जाना चाहिए। तो हम भी माता का नाम ले कर चल पड़े। जैसे जैसे अँधेरा होता गया, पूरा रास्ता रोशनियों से नहा गया। वाकई सड़क अच्छी बनी थी। अब हमारी यात्रा भी आसानी से हो रही थी। मौसम में ठंडक बढ़ती जा रही थी और दूर कहीं भवन के आसपास की रोशनियां भी दिखने लगी थीं। अगले कुछ समय में हम भवन तक पहुँच गए। पहला काम अपना बैग क्लॉक रूम में रखा कर नहाना था। हमने निर्णय किया कि बारी बारी से तीनों नहा लेते हैं। श्राइन बोर्ड द्वारा सुविधाएँ अच्छी थीं। हम एक बाथरूम में पहुंचे। पानी बेहद ठंडा था । लेकिन नहाना तो था ही। नहा कर कपडे बदले और क्लॉक रूम की लाइन में लग गए। बहुत लम्बी लाइन थी। क्लॉक रूम फुल था। जब कोई भक्त लॉकर खली कर अपना सामान ले जाता तो वो लॉकर लाइन में लगे व्यक्ति को मिलता। हमारा नंबर काफी देर में आया। लॉकर में सामान रख कर हम भवन की तरफ बढ़ चले। रास्ते में प्रसाद लिया और दर्शन की लाइन में लग गए। 

पूरा वातावरण बहुत ही भक्तिमय था और जय माता दी के जयकारे गूँज रहे थे। लाइन तेजी से आगे बढ़ती गयी और आखिर मेरा नंबर भी दर्शन के लिए आ ही गया। जैसे ही दर्शन हुए तो आँखों से आँसू ही बह गए। ऐसा लगा जैसे कि यहाँ आने में बहुत ही देर कर दी।

पुजारी जी हर भक्त को तीनो पिण्डीओं का नाम बताकर दर्शन कराते और सिक्योरिटी वाले आगे बढ़ने के लिए कह देते। शायद हर भक्त को कुछ सेकंड का समय ही मिल रहा था, लेकिन ये भी बहुत था। दर्शन कर वापस चले। श्राइन बोर्ड के काउंटर पर जा कर प्रसाद और देवी मां की छवि के सिक्के लिए और वापस क्लॉक रूम की तरफ चल दिए। 

बड़ा ही विचित्र अनुभव था। कुछ देर पहले इसी रास्ते पर हम भवन जाने की लाइन में थे। तब में और अब में बहुत ही अंतर था। अब मन में इतनी शांति थी कि आसपास की भीड़भाड़ का पता ही नहीं चल रहा था। क्लॉक रूम पर पहुंचे तो देखा कि वहां की लाइन अब भी काफी लम्बी थी। हमने अपने सामान लिया और खाना खाने चल पड़े। पास ही एक जगह राजमा चावल खाये और चाय पी। इसके बाद वापसी की यात्रा पर चल पड़े। 

अब हम नीचे के तरफ जा रहे थे इसलिए हमारी चाल में तेजी थी। पहाड़ों पर ठंडी हवा और भी ठंडी हो गयी थी। लगभग आधी रात के समय हम वापस अधकुंवारी पहुंचे। एक ही दिन में इतना चलने की वजह से पैरों में बहुत ही अकड़न हो गयी थी।  अधकुंवारी पर एक मेडिकल शॉप मिला तो हिमानी Fastrelief की एक ट्यूब ले ली और अपनी पिंडलियो पर लगा ली। पैरों को गर्मी मिली और थोड़ा आराम आया। 15 मिनट आराम कर और कॉफ़ी पी कर आगे की यात्रा शुरू की।  

यहाँ एक गड़बड़ हो गयी - निशांत के साथ!!!

दरअसल मैंने और तरुण ने जीन्स पहनी थी जबकि निशांत जी घुटनों तक की कैपरी में थे। अब मूव, Iodex या हिमानी Fastrelief लगाने का सही तरीका ये है कि शरीर के जिस भाग पर आप दवा लगाएं वहां हवा नहीं लगनी चाहिए। अन्यथा शरीर की मांसपेशियां रिलैक्स होने की जगह और टाइट हो जाती हैं। यही निशांत के साथ हुआ। जहाँ तरुण और मेरे लिए चलना अब आसान हो रहा था, वहीँ निशांत को एक एक कदम रखना मुश्किल हो रहा था। ठंडी हवा जैसे ही उनके पैरों को लगती, उनकी पिंडलियों की मसल्स और भी टाइट होती रहीं। भाई साहब रैंप पर नहीं चल पाए तो परेशानी में सीढ़ियों से उतरने लगे। ये करेले पर नीम चढ़ने जैसे हो गया। उनके पैर जैसे जाम ही हो गए। हम ब्रेक लेने के लिए रुक गए। थोड़ा आराम किया तो निशांत को भी राहत मिली। वापस चले तो 10 मिनट में पहले वाला हाल। यानि रुके तो सब ठीक लेकिन चलें तो हाल बेहाल। हँसते हँसते हम तीनों का ही हाल बुरा हो गया। हमने भी निशांत की बहुत खिंचाई की कि शायद तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड थी हिमानी, जो आज यहाँ बदला ले रही है। 

आखिर सुबह के 4 बजे हम नीचे तक पहुँच गए। ऑटो लिया, होटल पहुंचे और घोड़े बेच कर सो गए। 11 बजे आँख खुली तो दर्द और सूजन की वजह से पैरों को हिलाना भी मुश्किल था। चेक आउट का समय पास ही था। जल्दी जल्दी तैयार हुए। चेकआउट कर होटल से बाहर आये। नाश्ता किया और जम्मू स्टेशन की बस में बैठ गए। जम्मू से हमारी ट्रेन शाम को थी। ज्यादा समय था नहीं तो जम्मू रेलवे स्टेशन पर ही पहुँच कर ट्रेन का इंतजार करने लगे । ट्रेन प्लेटफार्म पर लगी, हमने अपनी सीटें पकड़ी और सो गए। देर शाम आंख खुली, खाने का इंतजाम किया और फिर सो गए। सुबह सुबह ट्रेन दिल्ली पहुंची।

इस तरह हमारी पहली वैष्णो देवी यात्रा रही। 

No comments:

Post a Comment