दोस्तों, आप सभी का मेरे ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है। आज मैं अपनी अहमदाबाद यात्रा का वृतांत लिख रहा हूँ । यह २ दिन की यात्रा सुहाने मौसम और हलकी हलकी फुहारों के वजह से और भी शानदार रही।वैसे तो भारत देश कर हर शहर अपने खाने पीने के लिए मशहूर है परन्तु कुछ खास शहर ऐसे हैं जहाँ खाने की इतनी विविधताएँ हैं कि आपका टाइम कम पड़ जाये पर आप खाने की वैरायटी को पूरी तरह से एक्स्प्लोर ही नहीं कर पाते हैं।अहमदाबाद भी ऐसा ही एक शहर है।
जुलाई 2018 के दुसरे हफ्ते में अहमदाबाद जाने का कार्यक्रम बना और झटपट दोनों तरफ की ट्रैन टिकट बुक करा डाली । दोनों ही तरफ की टिकट राजधानी एक्सप्रेस के 3rd AC कोच में बुक हुई। क्यूंकि ये सफर सिर्फ १३ घंटो का है इसलिए आप आराम से रात भर सोते सोते अपनी यात्रा कर सकते हैं । राजधानी एक्सप्रेस शाम 7:55 पर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नो. १ से चलती है। मैं शाम को 6:30 बजे घर से कैब से निकला। शाम का समय होने के कारण सड़कों पर काफी जाम था। तक़रीबन साढ़े सात बजे मैं स्टेशन पहुँच गया। देखा तो ट्रैन अभी प्लेटफार्म पर नहीं आयी थी। यात्रीगण अपने अपने सामान के साथ प्लेटफार्म पर ट्रैन के आने का इंतजार कर रहे थे। IRCTC स्टाफ के मेंबर्स ट्रैन के भोजन को बड़ी बड़ी क्रेटस में डाल कर निश्चित जगह पर बैठे थे ताकि ट्रैन आते ही भोजन डब्बे में चढ़ाया जा सके।
तभी गाड़ी के Platform पर आने की घोषणा हुई और गाड़ी धीरे-धीरे रेंगते हुए प्लेटफॉर्म पर आने लगी। सभी यात्री अपना अपना सामान उठाकर गाड़ी में बैठने के लिए तैयार होने लगे। मैंने भी अपना सामान उठाया और अपने कोच की तरफ बढ़ चला। कोच में जाने पर मैंने देखा कि मुझे ऊपर की सीट मिली है। वैसे तो मुझे किसी भी सीट पर सोने में कोई समस्या नहीं होती लेकिन एसी कोच में हवा का आउटलेट ऊपर वाली सीट के बिल्कुल पास होता है । इसी वजह से ऊपर सोने वाले यात्रियों को ठंड का ज्यादा एहसास होता है । अपना सामान सीट के नीचे रखकर मैं फ्रेश होने के लिए बाथरूम गया । वापस आकर देखा की 4 सदस्यों की फैमिली नीचे की सीटों पर आ चुके थे । बड़ी फैमिली के साथ सफर करने में यही डर होता है कि उनकी बातें देर रात तक चलती हैं और इसी वजह से आप भी नहीं सो पाते । लेकिन सौभाग्य से यह लोग बड़े ही भले थे और 10:30 बजे तक सो भी गए । ट्रेन के चलने का समय हुआ और इंजन ने हॉर्न दे कर गति पकड़ी । रेंगती हुई ट्रेन प्लेटफार्म को पीछे छोड़ कर अपने अगले स्टेशन दिल्ली कैंट की तरफ बढ़ चली। इसी के साथ ट्रेन में मिलने वाली सुविधाओं का शुभारंभ भी हुआ। सबसे पहले पानी की बोतल, उसके बाद नींबू पानी, फिर सूप और फिर भोजन परोसा गया, लगभग डेढ़ घंटे में यह सब समाप्त हुआ। आइसक्रीम की सर्विस के बाद ट्रेन अटेंडेंट खाली प्लेटें समेटने लगे। इस बीच TT महोदय सभी की टिकट की जांच कर जा चुके थे। हमने भी ऊपर की सीट पर अपना बिस्तर लगाया। एक बार और बाथरूम जाकर आए और सोने का उपक्रम किया लेकिन मोबाइल महोदय सबकी नींद के बड़े दुश्मन है। लगभग आधा घंटा मोबाइल पर लगा कर और दो उबासियां मार कर मैं भी सो गया। रात में एक दफा नींद खुली तो पाया कि ट्रेन जयपुर स्टेशन पर खड़ी है। सुबह आँख खुली तो 7. 30 हो चुके थे। ट्रैन में नाश्ता परोसने की तयारी चल रही थी। एक तो वैसे ही में बिना फ्रेश हुए कुछ खाने वाला नहीं था और ट्रैन का अहमदाबाद पहुँचने का टाइम भी 9 बजे का ही था (साबरमती जंक्शन), इसलिए मैंने नाश्ता नहीं किया और नीचे आकर खिड़की के बहार का मनोरम दृश्य देखता रहा। आसमान में घने बादल छाये हुए थे, चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी और बड़ा ही सुहावना मौसम था। मेट्रो सिटीज में रहने वालों को वैसे भी ऐसे दृश्य काम ही देखने को मिलते हैं। इस बीच पता ही नहीं चला की कब 9 बज गए. ट्रैन के साबरमती पहुँचने की घोषणा हुई और मैं अपना सामान समेट दरवाजे की तरफ बढ़ा। लगभग आधे से ज्यादा लोग यही उतरने वाले थे। साबरमती स्टेशन अहमदाबाद शहर का दूसरा बड़ा स्टेशन हैं। यह साबरमती नदी के एक तरफ स्थित हैं जबकि मुख्य स्टेशन अहमदाबाद जंक्शन नदी के दूसरे और पुराने शहर की तरफ स्थित है। स्टेशन पर उतर कर मैने टैक्सी बुक की और अपने होटल कंट्री इन् भी फ़ोन कर दिया कि मैं तकरीबन 10 बजे तक चेक इन करूंगा। आमतौर पर ये होटल्स १२ बजे दोपहर के बाद ही रूम में चेक इन कराते हैं लेकिन स्पेशल निवेदन करो और रूम अवेलेबल हो तो पहले भी हो जाता है। जब में होटल पहुंचा तो सौभाग्यवश रूम अवेलेबल था। होटल के टॉप फ्लोर 10 वीं मंजिल पर कार्नर रूम का मिलना अपने आप में ही बड़ी सुविधा थी। रूम की बड़ी विंडो से अहमदाबाद शहर का मनोरम दृश्य, काळा घने बादल और हवा में हिलते हुए पेड़ बड़े ही सुन्दर लग रहे थे। लेकिन मुझे बहुत जोर की भूख भी लग रही थी। मैं बड़ी ही फुर्ती के साथ नाहा धो कर तैयार हुआ और मोबाइल के गूगल एप में लक्ष्मी गंठिया रथ का नेविगेशन लगा कर होटल से बाहर निकला। लक्ष्मी गंठिया होटल से पास ही था। मौसम को देख कर मैनें वहां तक पैदल जाना ही ठीक समझा।
लक्ष्मी गंठिया अहमदाबाद के लोकल नाश्ते गांठिया, फाफड़ा, जलेबी, पात्रा, ढोकला, खांडवी और मसाला छाछ के बढ़िया और सस्ता आउटलेट है। पूरे अहमदाबाद में इसकी कई शाखाएं हैं। वहां पहुँच कर मैंने अपने लिए थोड़ा गांठिए, पात्रा, जलेबी और खांडवी ली। साथ में ठंडी और मसाले दार छाछ थी। इनके साथ मिलने वाली स्पेशल चटनी और कच्चे पपीते की सलाद जबरदस्त थी। गंठिया बनता हुआ देखना भी एक अनुभव है। बनाने वाले ने बेसन और मसाले के मिक्सचर की एक बड़ी पेड़ी ली और उसे गरम तेल की कढ़ाई के पास हाथ से रगड़ता रहा। गांठिए एक लम्बे सांप की तरह कढ़ाई में जाता रहा और बिना टूटे हुए पूरा बेसन ख़तम हो गया। पात्रा अरबी के पत्तों में बेसन के मसाले दार लेप को लगा कर, उन्हें रोल कर, और काट कर भाप में पकाया जाया है। वहां की जलेबी का तो कोई जवाब ही नहीं। पतली पतली खस्ता जलेबिया खा कर पेट ही भर सकता हैं, मन कभी नहीं भरता।
भर पेट खाने के बाद मैंने साथ की दुकान से मसाला चाय पी और वापस होटल आया। होटल पहुँच कर तैयार हुआ, अपनी मीटिंग्स के लिए फ़ोन कॉल किये और निकल पड़ा अपने काम पर। लगभग २ बजे नवरंगपुरा में मीटिंग से फ्री हुआ और टैक्सी वाली को सासुजी dinning हॉल चलने को कहा। नाश्ते में पी गयी छाछ का ही असर तहत की लगभग ३ - ४ घंटे में ही मेरा नाश्ता पच गया था और मैं फिर से तैयार था - एक जबरदस्त गुजराती थाली के लिए।
सासुजी Dinning हॉल नवरंगपुरा में स्थित है और बहुत ही प्रसिद्द है। यह रेस्टोरेंट तीसरी मंजिल पर है लेकिन ग्राउंड फ्लोर पर भी एक छोटा सा काउंटर बनाया है। इस काउंटर पर आप मेनू, कीमत और आज मिलने वाली डिशेस के बारे में जान सकते हैं। जब में रेस्टरूअत पहुंचा तो लंच टाइम लगभग निकल ही चूका था और कई टेबल खाली थे। स्टाफ ने मुझे एक टेबल पर बिठाया और फिर पूरी सेना मेरी खातिर में लग गयी। सब से पहले पानी की बोतल, जो की फ्री होती है, फिर २ चटनिया, २ फरसाण (समोसा और ढोकला), सलाद, अचार, ४ सब्जिया जिसमें १ सूखी, १ पनीर, १ लोबिया और १ आलू की रासे वाली सब्जी थी, इसके बाद बासुंदी, कढ़ी, दाल, पूरी, बाजरे का टिक्कड़, रोटी, चावल, पापड़, छाछ और दाल का हलवा। खाने में इतना कुछ था की शायद में एक २ चीजें भूल भी गया हूँ। पूरा स्टाफ हर कस्टमर को पूरी तल्लीनता से खिला रहा था। इस तरह के खाने में मेरे साथ यही प्रॉब्लम है कि मैं रोटी और चावल न खा कर सब्जिया और मिठाई से ही पेट भर लेता हूँ और ज्यादा खा जाता हूँ। लेकिन मैं जानता था की रात का खाना वैसे भी नहीं खाना है। इसलिए बिना शर्म और संकोच के मैनें पेट पूजा की। बिल आया 270 रुपये जिसमे टैक्स भी शामिल था। नीचे आ कर मैं अपने काम पर निकल गया।
शाम को होटल पहुँच कर फ्रेश हुआ और निकल गया लम्बी walk पर। आस पास की मार्केट्स छान कर और अपने हैवी लंच पचा कर होटल वापस जाने लगा तो हलकी बारिश शुरू हो गयी। मैं तेज तेज कदम बढ़ा कर होटल पहुंचा। होटल के बाहर मार्किट में 5 पानी के गोल गप्पे वाले को देखा तो सोचा ट्राई करना चाहिए। गोल गप्पे अच्छे थे और 5 में से 3 पानी का टेस्ट बढ़िया था। इसके बाद गुजरात के मशहूर ब्रांड Havmor की आइसक्रीम खा कर मैं रूम में आ गया।
कुल मिला कर पूरा दिन काफी अच्छा बीता। पूरी रात बारिश होती रही और मैं अगले दिन के प्लान के बारे में सोचता सोचता सो भी गया।
Nice to read
ReplyDeleteDear Suyogya Gupta Ji,
DeleteThank you for your encouraging words...
Regds
hi
ReplyDeleteHello
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